पेंटिंग और मूर्तिकला या स्थापत्य में तरलता का अंतर तो होता ही है और ये ही वजह है की मूर्तिकला में युग थोड़ा धीमी गति से बदलते हैं। जब ऑगस्ट रोडाँ , हाँ वो ही, द थिंकर के शिल्पकार, के समकालीन चित्रकार जब अपेक्षाकृत नए स्कूलों जैसे नॅचुरलिस्म के पार जा आधुनिकता के लिए रास्ता बना रहे थे, तब रोडाँ वस्तुतः अपने छेनी से प्राचीन क्लासिसिज़म की आदतों को छील कर निकाल, आधुनिकता को धक्का लगा रहे थे। मूर्तिकला अपने स्वरुप और सामग्री से ही भौतिक और ठोस विधा है। इसी भौतिकता की वजह से क्लासिसिज़म की महान थीम्स जैसे स्थिरता, एक सघन आलौकिक भव्यता और पौराणिक विषय इत्यादि संगीत और चित्रकला की तुलना में लम्बे समय तक चलते रह गए। अब ये रोडाँ पर ही आ कर टिका कि वो इस प्राचीन विधा में लय, लम्हों की क्षण भंगुरता, अधूरे पन की पूर्णता लाएँ। वो शिल्प में एक ‘embrace of ambiguity’ ले कर आए जो ऊपरी तौर पर विरोधाभासी लगने तत्वों जैसे कि भव्यता और अंतरंगता के प्रति निष्ठा के मेल से बना था।
रोडाँ को दिखावटी और भड़कीला कहा गया है। उनकी शोहरत 1917 में उनकी मृत्यु के बाद तेज़ी से नीचे गयी जब नयी पीढ़ी के शिल्पकारों (उनमें से कई उनके शिष्य भी थे जैसे Maillol, Brancusi, Bourdelle, Pompon आदि) रोडाँ के उमड़ते इमोशन और हाइपर डिटेलिंग की जगह आकार और अर्थ के दूसरे अप्रोच के साथ अपनी खुद की शैली ढूँढने लग गए। यद्यपि ये सब रोडाँ के क्लासिसिज़म के पहाड़ को पार करने से लाभान्वित हुए थे पर वो सब इस आंदोलन को आगे ले जाने के लिए नए और शांत तरीक़े ईजाद कर रहे थे जो रोडाँ से अलग, कम जटिल थे। इसके बावजूद आज दुनिया रोडाँ को शिल्पकला में आधुनिकता के निर्विवाद अग्रदूत के तौर पर जानती है और प्रभाव और क़द में उनकी तुलना माइकल एंजेलो तक से की जाती है।
चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य आदि कलाओं में प्राचीन क्लासिसिज़म स्वभाविक तौर पर भव्य और एक शास्त्रगत निश्चितता और अटलता लिए हुए था। एक परिपक्व सत्य पूरी तरह से परिभाषित और वस्तुतः पत्थर में गढ़ा हुआ। इसको ‘monumentality’ दैवीयता, एक युग, राजाओं, सामंतों और उनकी महिलाओं के प्रभाव की पूर्णता, के प्रतिनिधित्व के नज़रिये से भी देखा जाता है। उस समय की कृतियों में किसी बड़े भीषण क्षण जैसे, किसी संत की शहादत, सिंहासनारोहण, कोई धार्मिक चमत्कार, कोई नरसंहार युद्ध आदि का स्थिर शाश्वत चित्रण किया जाता था । रोडाँ जिनको क्लासिकल युग की कला तक पूरी पहुंच थी, उन्हें इस विराट पर पुराने सांस्कृतिक वर्चस्व, इस ‘monumentality’ को पलटने का एक बहुत सअर्थ हथियार सूझा। वो हथियार था संदेह ‘डाउट’ । वो भाग्यवश युगों के मिलन के उस चौराहे पर कला पटल पर आये थे जहाँ 19 वीं सदी क़ी विराटता और 20 वीं सदी के संदेह मिल रहे थे। उनकी ठिठक में, उस क्षण भंगुरता को पत्थर में पकड़ने के ज़िद - वो work in progress मानसिकता ने युगों के परदे पर एक बड़ी दरार डाली और ये युगांतरकारी दरार आज भी कलाकारों को प्रभावित कर रही है, उन्हें गढ़ रही है।
उनका ‘anti-monumentalism’ उनके पूर्णता के प्रतिकार का स्वाभाविक सहचर है। जब तक क्लासिसिज़म के भगवानों - स्थिरता, पूर्णता, भव्यता, दैवीयता को उनके पायदान से नहीं उतरा जाता, तब तक कला आधुनिक युग में कैसे आती, उसमे लय , संदेह, परिवर्तन और मानवीय हिचकिचाहट कैसे आती। ‘Les Bourgeois de Calais’ उनकी अमर कृति, जो ‘Calais’ शहर के छह धनिकों और सम्मानित नागरिकों को दिखाता है। इन Bourgeois श्रेष्ठियोँ ने किंग एडवर्ड की सेना को खुद को शहादत के लिए पेश किया था ताकि बाकी नागरिकों का जीवन बख्श दिया जाये। इतने क्लासिकी संभावनाओं से भरे पल में रोडाँ ने न तो समर्पण का पल उठाया और न ही सार्वजानिक वध का (जो हुआ भी नहीं था). रोडाँ उन त्यागी श्रेष्ठियों को तब उठाते हैं जब समर्पण के पल का ज़्वार उतर चुका है और ये छह लोग स्वयं के साथ नितांत अकेले हैं. यहाँ कला का काम किसी बड़े क्लासिक क्षण को recreate करना नहीं है बल्कि एक सूनेपन को पकड़ना है जिसमे अनिश्चतता, नैराश्य और सबसे ऊपर भविष्य में movement का वादा झलकता है। छहों व्यक्तियों की निराशा, नाश की आहट और अपनी किस्मत को समर्पण, इन पत्थरों में अभी भी work in progress अपनी भयावह परिणीति का इंतज़ार क्लासिसिज़म के स्थिर देवत्व से कोसों दूर है ।
पूर्णता की यह अस्वीकृति उनके बाद के वर्षों में, बिना हाथों या बिना सिर के धड़ जैसे शिल्पों में एक नए ही स्तर पर पहुंच गई। ये क्षत विक्षत कृतियाँ संभावनाओं के लिए द्वार थोड़ा खुला छोड़ देती हैं। परिणति एक अधूरेपन के बियाबान में टंगी रहती है और अपूर्णता इस अव्यवस्थित कोलाहल का ईंधन बन कर उभरती है और उसकी गति और लय बन कर बहती है। इस क्षय और पुनर्निर्माण की गतिशक्ति अविरल है। कला समीक्षकों ने इन अधूरे शिल्पों को मानव आकृति की अकूत अभिव्यक्ति क्षमता के प्रतीकों के रूप में देखा है। टाइम मैगज़ीन के प्रख्यात समीक्षक रोबर्ट ह्यूज़ लिखते हैं “उनका अधूरी मानवाकृति - शीर्ष विहीन पुरुष, आइरिस का अधूरा शरीर इत्यादि अधूरेपन के परंपरागत अभिव्यक्तियों, जैसे कि ऐसा शरीर जो अभी पत्थरों से आज़ाद न हुआ हो या टूटे हुए ऐंटीक के टुकड़ों से कहीं आगे जाता है। ये कम होते जाने, तराश कर छिलते जाने की शक्ति का एक ज़ोरदार दावा पेश करते हैं। ये मानव शरीर की अभिव्यक्ति क्षमता का सशक्त प्रदर्शन है जो इतनी सघन है की सर जैसे भावना के आइने के ना होने पर भी ज़रा भी कम नहीं होती ।” ये अधूरापन गति का निसंदेह संवाहक है और ये गतिमान ऊर्जा क्लासिसिज़म की भव्य स्थिरता से एक बहुत बड़ी दूरी की द्योतक है । Iris, Messenger of the Gods या Walking Man का अधूरा असमंजस और रोडाँ की विशिष्ट शिल्पगत मांसलता पत्थर और कांसे में एक गति का आभास देता टेन्शन पैदा कर देते हैं । इस गति के आभास में और उनकी अपूर्ण की सत्ता मूर्तिकला की भाषा की समझ भी दिखाती हैं और उसको बहुत उपयोगी तरीक़े से पलटने की अपार सम्भावनाएँ भी जगाती है । वो शिल्प से बेहद सर्जनात्मक खेल सा खेलते महसूस होते हैं ।
जहां उनका आकृतियों के अपूर्ण आयामों से खेलना पिकासो की याद दिलाता है, वहाँ कहना होगा की उनकी असली कर्मभूमि शिल्प की सतह थी -त्वचा और ज़्यादा गहराई से देखा जाए तो मांसलता। रोडाँ कहते थे की एक सच्चे कलाकार के लिए संसार में सब कुछ सुंदर है क्योंकि उसके पास वो नज़र है और निर्भय स्वीकार करने की क्षमता है जो हर सच के बाहरी स्वरूप में उसकी आंतरिक सुंदरता देखती है । यहाँ रोडाँ बिटिश पेंटर लुसियन फ्रायड के काफ़ी क़रीब हैं जिनके लिए हाड़ मांस संवेदन का ढेर ‘mound of feelings’. है । ये बोलती मांसलता फ़्रायड और रोडाँ दोनों में सेक्स को लेकर एक खुलापन पैदा करती है। जैसे फ़्रायड की मांसलता निरंतर रंग के उपयोग से निकलती है वहीं रोडाँ की मांसलता उसकी सबसे मेहनत से पूरी की गयी अधूरी अभिव्यक्ति से निकलती है। ‘Iris the Messenger of God’ की खुली कामुकता उसके नंगेपन से ना होकर उसकी सतहों के खुरदरेपन में साँस लेती है । रोडाँ ने अपने शिल्प में बेहद असली शारीरिक सतह प्राप्त की थी । Paul Gsell का भावुक आकलन कितना सटीक है । “"यह वास्तव में मांस है! आप सोचेंगे कि यह चुंबन और दुलार से ढला है! आप लगभग उम्मीद करते हैं, जब आप इस शरीर को छूते हैं, तो आप इसे गर्म पाएंगे” माँस की ये गरमाहट, क्लासिकवाद, जो आदर्श सतहों (त्वचा और आकृति) का प्रतिपादन करता है, के प्रतिकार का स्पष्ट संकेतक है। eroticism को लेकर वो सनसनीख़ेज़ होने की हद तक बदनाम हैं। उनकी मूल प्रवृत्तियों को उसके सबसे आदिम स्वरूप में पकड़ने की कोशिशों ने उनको कई बार अपने माडल्ज़ के शोषक का दर्जा भी दिलवाया है। रोडाँ की कला में कोई भी विज़ूअल समझौता सम्भव नहीं था। वो अपने न्यूड शिल्पों में ‘स्टेज इफ़ेक्ट’ नहीं आने देना चाहते थे । उनका कहना था । मुझे पता है की मेरी ड्रॉइंग में इतनी गर्मी कैसे है। मैं प्रकृति और कैन्वस के बीच कुछ नहीं आने देता न तार्किकता और न ही प्रतिभा । बस खुद को खुला छोड़ देता हूँ ।” Picasso , Matisse और गोया की तरह, रोडाँ एक तूफ़ानी, आदिम, नैसर्गिक प्रतिभा थे जहां प्रतिभा मात्र अपनी सर्व व्यापकता से सब कुछ ढक देती है और एक युगांतरकारी उत्कृष्टता को एक आदत और रोज़मर्रा बना देती है । रोडाँ एक निर्विवाद मास्टर हैं और उनका शिल्पकला मूर्तिकला को क्लासिकवाद की अजेय लगने वाली बाधा के पार ले जाना एक महान भगीरथ सफलता है ।