Tuesday, 18 October 2022

ऑगस्ट रोडाँ के साँस लेते पत्थर

                  

पेंटिंग और मूर्तिकला या स्थापत्य  में तरलता का अंतर तो होता ही है और ये ही वजह है की मूर्तिकला में युग थोड़ा धीमी गति से बदलते हैं।  जब ऑगस्ट रोडाँ , हाँ वो ही, द थिंकर के शिल्पकार, के समकालीन चित्रकार जब अपेक्षाकृत नए स्कूलों जैसे नॅचुरलिस्म  के पार जा आधुनिकता के लिए रास्ता बना रहे थे, तब रोडाँ वस्तुतः अपने छेनी से प्राचीन क्लासिसिज़म  की आदतों को छील कर निकाल, आधुनिकता को धक्का लगा रहे थे। मूर्तिकला अपने स्वरुप और सामग्री से ही  भौतिक और ठोस विधा है।  इसी भौतिकता की वजह से क्लासिसिज़म की महान थीम्स जैसे स्थिरता, एक सघन आलौकिक भव्यता और पौराणिक विषय इत्यादि संगीत और चित्रकला की तुलना में लम्बे समय तक चलते  रह गए।    अब ये रोडाँ पर ही आ कर टिका कि वो इस प्राचीन विधा में लय, लम्हों की क्षण भंगुरता, अधूरे पन की पूर्णता लाएँ। वो शिल्प में एक  ‘embrace of ambiguity’ ले कर आए जो ऊपरी तौर पर विरोधाभासी लगने तत्वों जैसे कि भव्यता और अंतरंगता के प्रति निष्ठा के मेल से बना था। 

     

रोडाँ को दिखावटी और भड़कीला कहा गया है। उनकी शोहरत 1917  में उनकी मृत्यु के बाद तेज़ी से नीचे गयी जब नयी पीढ़ी के शिल्पकारों (उनमें से कई उनके शिष्य भी थे जैसे  Maillol, Brancusi, Bourdelle, Pompon आदि) रोडाँ के उमड़ते इमोशन और हाइपर डिटेलिंग की जगह  आकार और अर्थ के दूसरे अप्रोच के साथ अपनी खुद की शैली ढूँढने लग गए। यद्यपि ये सब रोडाँ के क्लासिसिज़म के पहाड़ को पार करने से लाभान्वित हुए थे पर वो सब  इस  आंदोलन को आगे ले जाने के लिए नए और शांत तरीक़े ईजाद कर रहे थे जो रोडाँ से अलग, कम जटिल थे। इसके बावजूद आज दुनिया रोडाँ को शिल्पकला में आधुनिकता के निर्विवाद अग्रदूत के तौर पर जानती है और प्रभाव और क़द में उनकी तुलना माइकल एंजेलो तक से की जाती है। 



चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य आदि कलाओं में प्राचीन क्लासिसिज़म स्वभाविक तौर पर भव्य और एक शास्त्रगत निश्चितता और अटलता लिए हुए था। एक परिपक्व सत्य पूरी तरह से परिभाषित और वस्तुतः पत्थर में गढ़ा हुआ। इसको  ‘monumentality’ दैवीयता, एक युग, राजाओं, सामंतों और उनकी महिलाओं  के प्रभाव की पूर्णता,  के प्रतिनिधित्व के नज़रिये से भी देखा जाता है।  उस समय की कृतियों में किसी बड़े भीषण क्षण जैसे, किसी संत की शहादत, सिंहासनारोहण, कोई धार्मिक चमत्कार, कोई नरसंहार युद्ध आदि का स्थिर शाश्वत चित्रण किया जाता था । रोडाँ जिनको क्लासिकल युग की कला तक पूरी पहुंच थी, उन्हें इस विराट पर पुराने सांस्कृतिक वर्चस्व, इस ‘monumentality’ को पलटने का एक बहुत सअर्थ हथियार सूझा। वो  हथियार था संदेह ‘डाउट’ । वो भाग्यवश युगों के मिलन के उस चौराहे पर कला पटल पर आये थे जहाँ 19 वीं सदी क़ी विराटता और 20 वीं सदी के संदेह मिल रहे थे।  उनकी ठिठक में, उस क्षण भंगुरता को पत्थर में पकड़ने के ज़िद - वो work in progress मानसिकता ने युगों के परदे पर एक बड़ी दरार डाली और ये युगांतरकारी दरार आज भी कलाकारों को प्रभावित कर रही है, उन्हें गढ़ रही है।  


उनका ‘anti-monumentalism’ उनके पूर्णता के प्रतिकार का स्वाभाविक सहचर है।  जब तक क्लासिसिज़म के भगवानों - स्थिरता, पूर्णता, भव्यता, दैवीयता को उनके पायदान से नहीं उतरा जाता, तब तक कला आधुनिक युग में कैसे आती, उसमे लय , संदेह, परिवर्तन और मानवीय हिचकिचाहट कैसे आती।   ‘Les Bourgeois de Calais’ उनकी अमर कृति, जो ‘Calais’ शहर के छह धनिकों और सम्मानित नागरिकों को दिखाता है।  इन Bourgeois श्रेष्ठियोँ ने किंग एडवर्ड की सेना को खुद को शहादत के लिए पेश किया था ताकि बाकी नागरिकों का जीवन बख्श दिया जाये। इतने क्लासिकी संभावनाओं से भरे पल में रोडाँ ने न तो समर्पण का पल उठाया और न ही सार्वजानिक वध का (जो हुआ भी नहीं था). रोडाँ उन त्यागी श्रेष्ठियों को तब उठाते हैं जब समर्पण के पल का ज़्वार उतर चुका है और ये छह लोग स्वयं के साथ नितांत अकेले हैं. यहाँ कला का काम किसी बड़े क्लासिक क्षण को recreate करना नहीं है बल्कि एक सूनेपन को पकड़ना है जिसमे अनिश्चतता, नैराश्य और सबसे ऊपर भविष्य में movement का वादा झलकता है।  छहों व्यक्तियों की निराशा, नाश की आहट और अपनी किस्मत को समर्पण, इन पत्थरों में अभी भी work in progress अपनी भयावह परिणीति का इंतज़ार क्लासिसिज़म के स्थिर देवत्व से कोसों दूर है ।  




पूर्णता की यह अस्वीकृति उनके बाद के वर्षों में, बिना हाथों या बिना सिर के धड़ जैसे शिल्पों में एक नए ही स्तर पर पहुंच गई। ये क्षत विक्षत कृतियाँ संभावनाओं के लिए द्वार थोड़ा खुला छोड़ देती हैं। परिणति एक अधूरेपन के बियाबान में टंगी  रहती है और अपूर्णता इस अव्यवस्थित कोलाहल का ईंधन बन कर उभरती  है और उसकी गति और लय बन कर बहती है।  इस क्षय और पुनर्निर्माण की गतिशक्ति अविरल है। कला समीक्षकों ने इन अधूरे शिल्पों को  मानव आकृति की अकूत अभिव्यक्ति क्षमता के प्रतीकों के रूप में देखा है।  टाइम मैगज़ीन के प्रख्यात समीक्षक  रोबर्ट ह्यूज़  लिखते हैं “उनका अधूरी मानवाकृति - शीर्ष विहीन पुरुष, आइरिस का अधूरा शरीर इत्यादि अधूरेपन के परंपरागत अभिव्यक्तियों, जैसे कि ऐसा शरीर जो अभी पत्थरों से आज़ाद न हुआ हो या टूटे हुए ऐंटीक के टुकड़ों से कहीं आगे जाता है। ये कम होते जाने, तराश कर छिलते जाने  की शक्ति का एक ज़ोरदार दावा पेश करते हैं। ये मानव शरीर की अभिव्यक्ति क्षमता का सशक्त प्रदर्शन है जो इतनी सघन है की सर जैसे भावना के आइने के ना होने पर भी ज़रा भी कम नहीं होती ।” ये अधूरापन गति का निसंदेह संवाहक है और ये गतिमान ऊर्जा क्लासिसिज़म की भव्य स्थिरता से एक बहुत बड़ी दूरी की द्योतक है ।   Iris, Messenger of the Gods या  Walking Man का अधूरा असमंजस और रोडाँ की विशिष्ट शिल्पगत मांसलता पत्थर और कांसे में एक गति का आभास देता टेन्शन पैदा कर देते हैं । इस गति के आभास में और उनकी अपूर्ण की सत्ता मूर्तिकला की भाषा की समझ भी दिखाती हैं और उसको बहुत उपयोगी तरीक़े से पलटने की अपार  सम्भावनाएँ भी जगाती  है । वो शिल्प से बेहद सर्जनात्मक खेल सा खेलते महसूस होते हैं ।  





जहां उनका आकृतियों के अपूर्ण आयामों से खेलना पिकासो की याद दिलाता है, वहाँ कहना होगा की उनकी असली  कर्मभूमि शिल्प की सतह थी  -त्वचा और ज़्यादा गहराई से देखा जाए तो मांसलता। रोडाँ कहते थे की एक सच्चे कलाकार के लिए संसार  में सब कुछ सुंदर है क्योंकि उसके पास वो नज़र है और निर्भय स्वीकार करने की क्षमता है जो हर सच के बाहरी स्वरूप में उसकी आंतरिक सुंदरता देखती  है । यहाँ रोडाँ बिटिश पेंटर लुसियन फ्रायड के काफ़ी क़रीब  हैं जिनके लिए हाड़ मांस संवेदन का ढेर ‘mound of feelings’. है ।  ये  बोलती मांसलता फ़्रायड और रोडाँ दोनों में सेक्स को लेकर एक खुलापन पैदा करती है। जैसे फ़्रायड की मांसलता निरंतर रंग के उपयोग से निकलती है वहीं रोडाँ की मांसलता उसकी सबसे मेहनत से पूरी की गयी  अधूरी अभिव्यक्ति से निकलती है। ‘Iris the Messenger of God’ की खुली कामुकता उसके नंगेपन से ना होकर  उसकी सतहों के खुरदरेपन में साँस लेती है ।  रोडाँ ने अपने शिल्प में बेहद असली शारीरिक सतह प्राप्त की थी । Paul Gsell का भावुक आकलन कितना सटीक है । “"यह वास्तव में मांस है! आप सोचेंगे कि यह चुंबन और दुलार से ढला है! आप लगभग उम्मीद करते हैं, जब आप इस शरीर को छूते हैं, तो आप इसे गर्म पाएंगे”  माँस की ये गरमाहट, क्लासिकवाद, जो आदर्श सतहों (त्वचा और आकृति) का प्रतिपादन करता है, के प्रतिकार  का स्पष्ट संकेतक है। eroticism को लेकर वो सनसनीख़ेज़ होने की हद  तक बदनाम हैं। उनकी मूल प्रवृत्तियों को उसके सबसे आदिम स्वरूप में पकड़ने की कोशिशों ने उनको कई बार अपने माडल्ज़ के   शोषक का दर्जा भी दिलवाया है।  रोडाँ की कला में कोई भी विज़ूअल समझौता सम्भव नहीं था। वो अपने न्यूड शिल्पों में ‘स्टेज इफ़ेक्ट’ नहीं आने देना चाहते थे । उनका कहना था । मुझे पता है की मेरी ड्रॉइंग में इतनी गर्मी कैसे है। मैं प्रकृति और कैन्वस के बीच कुछ नहीं आने देता न तार्किकता और न ही  प्रतिभा । बस खुद को खुला छोड़ देता हूँ ।”   Picasso , Matisse और गोया की तरह, रोडाँ  एक तूफ़ानी, आदिम, नैसर्गिक प्रतिभा थे जहां प्रतिभा मात्र अपनी सर्व व्यापकता से सब कुछ ढक देती है और एक युगांतरकारी उत्कृष्टता को एक आदत और रोज़मर्रा बना देती है । रोडाँ एक  निर्विवाद मास्टर हैं और उनका शिल्पकला मूर्तिकला को क्लासिकवाद की अजेय  लगने वाली बाधा  के  पार ले जाना एक महान भगीरथ सफलता है । 

  


Tuesday, 11 October 2022

रोवन एटकिंसन: हाइपर कॉमेडी की सादगी

 


रोवन एटकिंसन एक दुर्लभ प्रजाति हैं - a natural born actor, एक नैसर्गिक अभिनय प्रतिभा। वो इतने सहज और गहरे कॉमेडियन हैं की वो चरित्र को अभिनीत करने के बजाय उसे जीते हैं। उन्होंने कॉमेडी की विधा उठाई और उस पर अपने दबे मुलायम चुम्बकीय व्यक्तित्व की मुहर लगा दी।  । सहजता और अंडरस्टेटमेंट उनकी प्रतिभा के प्रमुख तत्व हैं। अंडरस्टेटमेंट और मिस्टर बीन- सुनने में अजीब लगता है लेकिन मिस्टर बीन या एटकिंसन द्वारा निभाया गया किरदार, हमेशा मद्धिम सुर में ही  होता है। कोई भी अभिनेता जिसने अभिनय ‘सीखा’ हो वो मिस्टर बीन को थोड़े ऊँचे ऑक्टेव में खेलता पर एटकिंसन के लिए तो अभिनय सांस लेने जैसा सहज है। यहाँ सीखने से ज़्यादा अभिनय instincts से आया होता है।  




अभिनय की ये प्रकृति रोवन एटकिंसन को अपने व्यक्तित्व और जीवन को साफ़ हिस्सों में जीने की आज़ादी देती है. ऐसे अभिनेता को हमेशा चरित्र में रहने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वो कॉमेडी के मोड में अपनी इच्छा अनुसार कभी भी जा सकते हैं।   ज्ञात हो की वे बेहद शर्मीले और प्राइवेट किस्म के व्यक्ति है। टोनी रॉबिंसन, जिन्होंने Blackadder  में   Blackadder with "cunning plan" की भूमिका निभाई थी, रोवन एटकिंसन के बारे में कहते हैं कि रोवेन  उन कुछ गिने चुने बड़े कलाकारों में से हैं जिनकी परदे के परे भी एक समृद्ध ज़िन्दगी है। रॉबिन्सन भी रोवेन को अपनी पीढ़ी के सबसे मंजे हुए कॉमेडियन मानते हैं। और उनके शर्मीले व्यक्तित्व के बारे में कहते हैं कि जब वो काम नहीं कर रहे होते हैं तो कमरे में उनकी उपस्थिति का भान भी नहीं होता है पर जैसे ही वो शुरू होते हैं सारा ध्यान उन पर ही केंद्रित हो जाता है।   


आदिम नैसर्गिक अभिनय ही उनकी छोटी काया के बावजूद उनको overshadow होने से बचाता है। ब्रिटिश कॉमडी महान प्रतिभाओं से भरी पूरी है और रोवेन ने कई महान कॉमडी के उस्तादों के साथ काम किया है। स्टेफ़न फ़्राई और ह्यू लॉरी जैसे दिग्गज जो एक ही सीन में अपनी टाइमिंग से अपने सामने वाले कलाकार को खा जाने की शक्ति रखते हैं ने एटकिंसन के साथ स्क्रीन बाँटा है जिनके साथ इन दिग्गजों की मौजूदगी से सीन में समृद्धि ही आयी जो रोवेन एटकिंसन की हाइपर कॉमडी से पहले ही सुलग रहा होता है। Black Adder में इन बड़े कलाकारों के मज़बूत किरदारों और performance के बाद भी ये सिरीज़ पूरी तरह से रोवेन की सिरीज़ थी। ये इस लिए भी होता है क्योंकि वे हास्य पैदा करने के लिए 'प्राप्स' पर निर्भर नहीं हैं। जहां वो शब्दों से भरी कॉमडी Black Adder में ज़बरदस्त हैं तो हाव भाव वाली फ़िज़िकल कॉमडी मिस्टर बीन में तो बहुत ही शानदार रहे। 


उनका स्टाइल अपने चरित्र की कोर पर केंद्रित करने का है और व्यवधानों को तराश कर निकाल देने का। ये अपने आप में अभिनय की ही तो परिभाषा है। इस डिस्टिलेशन के बाद जो भी बचता है वो है शुद्ध परिष्कृत हाइपर कॉमडी। 



Monday, 10 October 2022

पॉल सेज़ेन: पूर्ण ठोस उपस्थिति का एक नैतिक आग्रह

 

एक सेज़ेन (Cezanne) कैनवास के सामने खड़े होना वास्तविकता के स्पष्टतम रूप का का सामना करना है। एक सेज़ेन पेंटिंग मौजूद, ठोस और अधिकतम संभव सीमा तक पूरी तरह से  परिभाषित होती है। एक ऐसी दुनिया में जहां एक साधारण  गोले में कलात्मक इरादे को संप्रेषित करना चतुर माना जाता है और अमूर्तता के नाम पर औसत दर्जे के प्रयासों को कला का नाम दे दिया जाता है, सेज़ेन ने ठोस उपस्थिति का रास्ता चुना।  वो अपनी संवेदनाओं को पूर्ण रूप से मूर्त करने के लिए लालायित रहते हैं। उनकी संवेदना एक क्षणभंगुर उत्तेजना नहीं है, बल्कि एक ठोस ऑप्टिकल संपूर्ण है जिसमें मूर्त गुणों  की एक ठोस समृद्धि है जो कलाकार को कैनवास पर उन्हें उतारने  की  चुनौती देती है। सेज़ेन उस ठोस उपस्थिति को ईमानदारी से महसूस करना लगभग एक नैतिक अनिवार्यता मानते हैं।

अपनी कला की तरह सेज़ेन एक सांस्कृतिक प्रभाव की दृष्टि से भी एक ठोस मुक़ाम हैं। उनके बाद मॉडर्न आर्ट में  बहुत ज़्यादा कुछ ऐसा नहीं है जो उनकी दहलीज़ पर आ कर उनको सलाम कर के न गया हो। क्यूबिज़म शायद सबसे खुले तौर पर उनका क़र्ज़ा स्वीकार करता हो पर सेजेन, जैसा Matisse कहते हैं ‘सब कुछ के पिता थे’ ।जब Lucien Freud रंग के पहाड़ से वसा भरी मानव शरीर की नग्नता उभारने के लिए यथार्थ की अंतिम परत पर जुटे थे तो वो भी सेज़ेन के उसी  moral imperative of solidity का ही मान रख रहे थे। यहाँ तक कि Andy Warhol की कला में उपस्थित आम वस्तुओं पर फ़्रेम लगा कर और presentation over representation की महारत में भी सेज़ेन की गूँज साफ़ सुनाई पड़ती है।  सभी को पता है सेज़ेन के तथाकथित ज्यामीतीय कृतियों ने  क्यूबिज़म को सीधे प्रभावित किया था। उनका ठोस मौजूदगी का आग्रह क्यूबिज़म के कर्णधारों को बेहद पसंद आया था क्योंकि क्यूबिज़म भी वास्तविकता के सभी आयामों को कैन्वस पर उतारने का ही आंदोलन था। सर्वविदित है कि पिकासो जब ‘Les Demoiselles d’ Avignon.’ पेंट कर रहे थे और एक नए आंदोलन को उकेर रहे थे तब उन्होंने ‘Large Bather’ का एक लीथोग्राफ ख़रीदा था। वो कहते थे कि सेज़ेन  की चिंताओं (anxiety) में अलग ही असर है। 

 

क्यूबिज़म के दूसरे पुरोधा ब्राक ने और विस्तार से सेजेन के प्रभाव को स्वीकारा है। वो कहते हैं “सेज़ेन के बाद सब पलट गया था….सब कुछ नए सिरे से सोचना पड़ा, सब कुछ जिसको हम जानते थे और जिसकी हम इज़्ज़त करते थे और प्यार करते थे। सेज़ेन के काम में हमें न सिर्फ़ नया चित्रात्मक निर्माण मिला बल्कि अक्सर भुलाया हुआ स्थान की, स्पेस की एक नैतिक समझ भी” ब्राक का ये कथन सेज़ेन के कला की ठोस सच्चाई को पकड़ने के ज़ुनून की जड़ में जाता है । 


  

 

पिकासो ने सज़ेन की चिन्ता के बारे में बोला था। ये चिन्ता उनके जुनून के नैतिक आयाम का बड़ा हिस्सा है। अपनी मृत्यु के महज़ छः हफ़्ते पूर्व सेज़ेन उन्होंने अपने पुत्र को कहा था कि “एक पेंटर के तौर पर अब में प्रकृति के सान्निध्य में ज़्यादा निखरा हुआ महसूस करता हूँ पर मेरे लिए उन  संवेदनों को मूर्त करना पीड़ाप्रद होता जा रहा है।मैं वो तीक्ष्णता नहीं प्राप्त कर पा रहा हूँ  जो मेरी इंद्रियाँ महसूस कर रही हैं। मैं प्रकृति में बिखरे रंगों की अभिनव आभा नहीं पैदा कर पा रहा हूँ”। सेज़ेन की चिंता उनकी अभिव्यक्ति की छटपटाहट - जितना मैं तुम्हें महसूस करूँ उतना तुम्हें पा भी लूँ- को मे उन्होंने आधुनिक चेतना की कसौटी के स्तर तक ऊंचा उठाया। ह्यूज़ भी सेज़ेन  के संघर्ष में नैतिक आयाम को बखूबी निकालते हैं। “उनकी पेंटिंग अस्मिता की खोज का एक निरंतर नैतिक संघर्ष थी, एक खोज इस दूसरे - प्रकृति की अंतरतम चित्र उतारने की, वो भी एक कला परंपरा की निरंतर प्रेरणा और जाँच के तहत, जिसका वह सम्मान करते थे।” 


 

  

सेजेन की कला का विकास काफ़ी रोचक रहा है। प्रारंभ कला से काफ़ी दूर था Aix-en-Provence जहां वो 1839 में जन्मे थे में उस समय के फ़्रान्स के हिसाब से कला का ज़्यादा चलन नहीं था। इनके पिता श्रमिक से हैट निर्माता से बैंकर बने थे।  सौभाग्यवश पिता अपने पुत्र की कला आकांक्षाओं के को लेकर काफ़ी सहयोग करते थे और उनकी प्रतिभा को लेकर काफ़ी आशावान थे। 1852-1858 तक सेजेन ने बर्बन कॉलेज में पढ़ाई की जहां वो लेखक ज़ोला से मिले और जीवन पर्यंत मित्र रहे। हालाँकि कॉलेज में सेजेन सारे साहित्यिक और ज़ोला सारे कला के पुरस्कार जीता करते थे। उसके बाद उन्होंने कुछ दिन क़ानून की पढ़ाई की पर ज़ोला के निरंतर प्रोत्साहन से पेंटिंग की राह पकड़ी और 1861 में दोनों मित्र पेरिस आ गए ।

 

पोर्ट्रेट बनाने की विधा में  सेज़ेन का  ‘उपस्थिति, ठोस घनत्व ‘ का दर्शन पूरी परपक्वता से निखरा है।  1869-70 के उनके चित्रकार मित्र Achille Emperaire की पोर्ट्रेट से शुरू कर वो विश्व के सर्वकालिक श्रेष्ठ पोर्टेट कलाकारों की श्रेणी में आते गए।  उनकी सेल्फ पोर्ट्रेट्स की तुलना रेम्ब्रां से की गयी है। उनके द्वारा बनायीं गयी पोर्ट्रेट्स अपनी चित्रगत विशिष्टता को पूरी मजबूती से व्यक्त करती हैं और उनके विषय अपनी पूर्णता में कैनवस पर उतरते हैं और अपना स्थान एक दृढ़ता के और बेहिचक स्वामित्व भाव से लेते हैं और आकार, प्रकार और भावना के तनिक भी विलयन मंदन का कोई भी अवसर नहीं पैदा होने देते हैं।  संवेदन की कैनवस पर पूर्णता, उपस्थिति के व्याकरण को केंद्रीय अग्र भूमिका देने से आती है।  ह्यूज़ ने सेज़ेन की स्थानीय  mountain- Mont Ste- Victoire के यथार्थ और उपस्थिति को गढ़ने की तलाश को बहुत अच्छे से बताया है। मूल अंग्रेज़ी में पढ़ना शायद ज़्यादा श्रेयस्कर होगा “Each painting attacks the mountain and its distance as a fresh problem. The bulk runs from a mere vibration of watercolor on the horizon, its translucent, wriggling profile echoing the pale green and lavender gestures of the foreground trees, to the vast solidarity of the Philadelphia version of Mont Ste.-Victoire, 1902-06. There, all is displacement. Instead of an object in an imaginary box, surrounded by transparency, every part of the surface is a continuum, a field of resistant form. Patches of gray, blue and lavender that jostle in the sky are as thoroughly articulated as those that constitute the flank of the mountain. Nothing is empty in late Cézanne — not even the bits of untouched canvas. …. His goal was presence, not illusion, and he pursued it with an unremitting gravity. The fruit in the great still lifes of the period, like Apples and Oranges, 1895-1900, are so weighted with pictorial decision — their rosy surfaces filled, as it were, with thought — that they seem about twice as solid as real fruit could be. … The light in his watercolors (perhaps the most radiant exercises in that medium since Turner) is not just the transcendent energy, the "supernatural beauty" of abstraction; it is also the harsh, verifiable flicker of sun on Provençal hillsides. To his anguish and fulfillment, Cézanne was embedded in the real world, and he returns us to it, whenever his pictures are seen.”  ये संवेदन के पूर्ण दोहन का संघर्ष ही सेज़ेन को इतना स्थायी रूप से ज़रूरी बनाता है।.



सेज़ेन की अपील का स्थायित्व उनकी सफलता की व्यापकता की वजह से भी है। कला के कई आयामों में वो शीर्ष पर है। सफलता की ये व्यापकता और विशालता दुर्लभ होती है। उनके प्रभाव की जब भी बात होती है तो उनकी कला के किसी एक आयाम  से प्रभावित हो कोई प्रतिभा उसे नयी ऊँचाइयों पर ले जाती है तो कोई दूसरा आयाम किसी और चित्रकार  को प्रभावित कर रहा होता है । क्यूबिज़म पर उनका प्रभाव तो हम देख ही चुके हैं । सेज़ेन में हम रंग, रूप, ड्राइंग, बनावट, मॉडलिंग और अभिव्यक्ति के अनेक आयाम देखते हैं । उनके समय का पेरिस और कला की दुनिया काफ़ी आत्मघाती प्रवृत्तियों से भरी और व्यवधान पूर्ण थी । ऐसे में उनके लम्बे निरंतर ऋषि तुल्य  समर्पण की वजह से हम उनके आउट्पुट में एक भारीपन और परिपक्वता देखते हैं । इस परिपक्वता और लम्बे मंथन ने उनके काम को एक जटिलता और समृद्धि प्रदान की है जिसके चलते बाद के चित्रकारों को पूर्णत: विकसित उत्कृष्ट आयामों से अपने लिए पूरी एक विधा चुन ने का अवसर मिल जाता है। उनके वॉटर कलर्ज़ की मृदुल आभा, धीर गम्भीर स्टिल लाइफ़, और पोर्ट्रैट्स की भव्य उपस्थिति किसी भी नए स्कूल की नींव बन ने के लिए पर्याप्त है। यहाँ भी उनकी उपलब्धि का नैतिक आयाम स्पष्ट है।  Meyer Schapiro कहते है “उनकी विविधता चौंकाने वाली थी। यह विविधता  उनकी संवेदनशील भावना के खुलेपन पर टिकी है। उनकी कला में कैनवस मूड और अनुभूति का इम्प्रेशनिस्ट कलाकारों से ज़्यादा व्यापक विस्तार उतरता था। थीम्स की विविधता तो है पर पेंटिंग की भी विशेषताओं में भी ये विस्तार झलकता है। चाहे वो रेखांकन कर रहे हों या रंग का प्रयोग कर रहे हों; या प्रकृति के स्पंदन को कैद कर रहे हों, चाहे वो तगड़े ब्रश के साथ  या वाटरकलर के हलके हाथ के साथ; वो दोनों में ही स्थिर और आश्वस्त हैं। उनका अपने त्वरित संवेदनों और अपने व्यक्तित्व की संचित खूबियों में एक गहरा विश्वास था। वो  भावुक और शांत, गंभीर और हलके हो सकतें हैं पर वह हमेशा ईमानदार होते है।” सेज़ेन का खुलापन एक प्रत्यक्ष अनौपचारिकता उनके Frankness of means’  से मिल कर उनको युग निर्माताओं की श्रेणी में ले जाती है।  . 

अपनी कला में जो अभिव्यक्ति वो खोज  रहे थे वो उनके समय, या, आज भी, नहीं अस्तित्व में नहीं है।  उनका संवेदनशील व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति की छटपटाहट नयी सेंसिबिलिटी की तलाश में थी. हालाँकि उनके आउटपुट की परिपक्वता के बावजूद भी उनकी तलाश अधूरी रही। कई मायनों में उनका ये अधूरापन ही उन्हें  ‘Patriarch of Modernism’ बनाता  है। ये महसूस करने और पाने के बीच का फासला और उसकी पीड़ा को उन्होंने ऊर्जादायनी शक्ति के तौर पर उपयोग किया। कई  कलाकारों (शायद जैसे वॉन  गॉग ) में ये पीड़ा आत्मघाती बन कर निकली थी।  इस ऊर्जा का उपयोग सेज़ेन ने मॉडर्न आर्ट के नए दरवाजे खोलने में किया  सच ही है की  आधुनिकतावाद कला के इतिहास में एक तलाश है कोई स्थिर बिंदु नहीं। यह तथ्य कि सेज़ेन की यात्रा  अधूरी रह गयी थी  उनकी  मानवता और महानता का प्रमाण है।

 

 


Thursday, 6 October 2022

क्लींट ईस्टवुड - न्यूनता में भव्यता



मिनिमलिस्म -न्यूनतावाद,  जीवन के कई क्षेत्रों जैसे की कला, स्थापत्य या सामान्य रहन सहन की एक शैली या पद्धति है जिसमे सिर्फ उन्हीं चीज़ों को रखा जाता है या फोकस किया जाता है जो उस क्षेत्र के लिए अति आवश्यक हों और उसको एक अर्थ प्रदान करते हों।  फालतू के व्यवधान  को हटाते  जाना जब तक केवल मूल तत्व ‘कोर’ ही बचे यानि कम से कमतर।क्लिंट  ईस्टवुड जैसी भव्य उपस्थिति के लिए ‘मिनिमल’ शब्द का उपयोग थोड़ा अजीब है। वह एक विशाल स्क्रीन प्रजेंस और युगांतरकारी सांस्कृतिक प्रभाव के साथ एक शारीरिक रूप से भी बड़े व्यक्ति हैं। फिर भी उनकी इस विशाल उपस्थिति के साथ भी , जो शब्द उन्हें परिभाषित करता है वह है ‘मिनिमल’ । वह और उनका कार्य 'एक सघन केंद्रीय संतुष्टि’ देने और बाकी सब कुछ हटाने के बारे में है। उनका मिनिमलिस्म उनके विराट व्यक्तित्व के प्रभाव को और सटीकता से फ्रेम करता है।  हर क्षेत्र में उनका एक ‘लीन टेलीग्राफिक स्टाइल’ है जो उनकी स्क्रीन  ‘प्रजेंस’ और उनके निर्देशन के आउटपुट की पहचान है।वो सब कुछ छिटकाते हुए अंतरतम कोर तक जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, सिर्फ इसलिए नहीं इस से व्यवधान होगा (अवश्य ही होगा) बल्कि इस लिए की उस सब से उनका कुछ भी लेना देना नहीं है।  वो सब व्यवधानों के बीच निपट स्पष्ट और साफ़ खड़े रहते हैं। जवानी की रंग रंगीली छवि के बावजूद ईस्टवुड एक चालक और बुद्धिमान व्यक्ति हैं।  और ये बुद्धिमत्ता उनके राजनीति, संपत्ति शादियों और परिवार के प्रबंधन में साफ़ झलकती है। इन सब क्षेत्रों में वो बहुत संपन्न और स्थिर स्थिति में हैं।  सबसे बड़ी बात ये बुद्धिमत्ता उनके करियर और कला को बनाने और बनाये रखने में बहुत सहायक सिद्ध हुई हैं ।  


सर्जिओ लिओनी और डॉन सीगल के साथ स्पगेटी वेस्टर्न्स और डर्टी हैरी सीरीज से पहले ही ईस्टवुड को अपने अभिनय की सीमाओं का पूरा भान था।  वो शान कोंनरी, डेंज़ल वाशिंगटन या मॉर्गन फ्रीमैन की तरह बहुआयामी अभिनेता नहीं हैं। उनकी रेंज सीमित है पर उस रेंज में वो अकेले, अद्वितीय हैं।  British GQ के Jonathan Heaf लिखते हैं “पॉल नूमन हमेशा बेहद smooth थे , मार्लेन ब्रांडो बहुत सुन्दर, स्टीव मक्क्वीन काफी गर्म दिमागी के साथ पेश आते थे।  ईस्टवुड एक बे परवाह stylishness के साथ आते हैं।  वे   दबंगई  और विश्वास सिर्फ चुरुट को अपने होठों पर एक तरफ से दूसरी तरफ झटकने भर से ही परदे पर बिखेर देते हैं।” अभिनय से ज्यादा ईस्टवुड एक प्रजेंस हैं  और उस उपस्थिति को  उनकी जबरदस्त मर्दानगी, उनका रौब और एक खतरे की झलक मानीखेज़ बनाते हैं।  अपनी अभिनय गत सीमाओं के चलते उन्हें अपने व्यक्तित्व के इन तत्वों से भरपूर काम लेना होता है।  जब  वो  हलके फुल्के  रोल कर रहे होते हैं तो भी उनके हलके फुल्के पन मैं एक अभिजात्य कड़ापन होता है।  एक DJ, एक हाँफते  FBI एजेंट, जर्नलिस्ट, बॉक्सिंग कोच, एक हिचकिचाहट से भरे ‘वेस्टर्न गन स्लींगर’ जैसे हलके फुल्के किरदारों में भी वो अपनी ‘असेट्स’ का पूरा दबदबा बखूबी लेकर आते हैं।  हर किरदार उनके’ स्टार परसोना’ के तत्वों से लाभान्वित होता है पर self-caricature का शिकार नहीं होता। ईस्टवुड स्पष्टतया एक सीमित अभिनेता हैं पर वो अपने सीमित ‘स्किल सेट’ बेहद कुशल और resourceful हैं। 




परदे पर भी उनका व्यक्तित्व एक ऐसे व्यक्ति का है जिसके व्यवहार में एक economy of gestures है उसे अपने को दिए हुए समय या ‘रिसोर्सेज’ को इस्तेमाल करने की कोई जल्दी नहीं है पर वो फोकस्ड है।  जल्दबाजी में न होने का मतलब ये बिलकुल भी नहीं है की वो धीमा है। वो बेहद तेज़ है क्योंकि वो व्यवधानों में न पड़ सिर्फ बेहद सघन तरीके से कोर पर केंद्रित है। वो अच्छी तरह से जानते हैं कि कैसे किसी मुद्दे, किरदार या पूरी फिल्म की कोर को कैसे न्यूनतम हरकतों के माध्यम उजागर किया जा सकता है। स्क्रीन पर वो एक सुथरी कुशलता लिए होते हैं और एक निर्देशक के तौर पर वो अपने शॉट्स फर्स्ट टेक में निपटाने के लिए विख्यात हैं।  उनकी विहंगम लगने वाली फ़िल्में भी अपनी केंद्रीय थीम पर पूरे अनुशासन से काम करतीं हैं।  उदाहरण के तौर  पर Unforgiven हिंसा की व्यर्थता और हीरो की हिंसा को लेकर अनिच्छा के बारे में है, Invictus तो मैनेजमेंट स्कूलों में लीडरशिप  और reconciliation पढाने  के लिए दिखाई जाती है और American Sniper स्नाइपर के नैतिक अकेलेपन का एक अध्ययन है।  ये विशाल विहंगम थीम हैं और ईस्टवुड इन पर अपने धीमे ध्यानपूर्ण तरीके से फोकस्ड रहते है, ये विशालता कभी भी भटकाव का सबब नहीं बनती है हर दृश्य बहुत क्लीनिकल तरीके से अपनी आत्मा की परतें उतारते हैं. असर इस ‘क्लीनिकल एफिसिएंसी’ के बावजूद भी कभी भी मशीनी नहीं होता है।  




ईस्टवुड गाथा में भी बिना भटके केंद्रीय तत्व की परतें उतारने की शिक्षा साफ़ दीखती  है।  जब सबको सीमित अभिनय क्षमता का एक सुन्दर नौजवान दिखता था तब इटालियन सेकंड यूनिट डायरेक्टर सर्जिओ लिओनी ने उनको लेकर जापानी समुराई फिल्मों और अमरीकी वेस्टर्न्स के मिश्रण से Man With No Name को पैदा किया। उन्होंने वेस्टर्न्स और समुराई फिल्मों के अंतर्निहित संरचना के मुख्य तत्व जैसे लड़ाकू लोग, धमकी भरे तरीके से घूरना, गन स्लिंगिंग को प्रधान कर व्यवधान पैदा करने वाले मेलोड्रामा और दुसरे तत्वों को गौड़ कर नए फॉर्मेट की रचना की।  न्यूनतम डायलाग  के साथ force of the personality का प्रभाव कम से कम मूवमेंट्स के साथ प्राप्त किया गया था। ईस्टवुड की ‘apprising taciturnity’, एक सजग धीर गम्भीर और विशाल व्यक्तित्व, इस विधा के बिल्कुल माफ़िक़ सिद्ध हुए।  उनकी तब ही से पालिसी रही की यदि आपके पास अच्छी सामग्री है, तो उनके साथ बहुत अधिक खिलवाड़ न करें। 


इटालियन  स्टिंट  के बाद क्लिंट  ईस्टवुड एक स्टार तो बन ही गए थे, पर  डर्टी हैरी सीरीज़ ने उन्हें एक आइकन बना दिया। डॉन सीगल ने उन्हें Coogan’s Bluff में निर्देशित किया था जहाँ ईस्टवुड ने अरिजोना के वेस्टर्न शेरिफ की भूमिका निभाई थी जो एक अपराधी को पकड़ने न्यू यॉर्क आता है।  इस फिल्म में man with no name को एक शहरी  परिवेश और एक पहचान मिली।  समाज की गंदगी के बीच एक तरह की नैतिक स्पष्टता निक्सन युग की समझ को भा गयी। डर्टी हैरी के लिए मंच सज चुका था। डर्टी हैरी एक ऐसा व्यक्ति था जो अपराध से लड़ाई में लिबरल tentativeness जो अक्सर दुरुपयोग रोकने  के लिए लायी जाती है, का पूरी तरह से परित्याग करने को तैयार था। इंस्पेक्टर कैलाहन (डर्टी हैरी का नाम), पूरी तरह से बुराई को निपटाने के लिए फोकस्ड है और किसी भी व्यवधान या हिचकिचाहट से कोसों दूर। उसकी पंक्ति  “You’ve got to ask yourself one question, ‘Do I feel lucky?’ Well, do ya, punk?” सिनेमा के इतिहास की आइकोनिक पंक्तियों में से एक है। प्रभावशाली आलोचकों में हिंसा के महिमामंडन पर असहजता थी । लेकिन ईस्टवुड को righteous हिंसा के वाहन के रूप में दर्शकों ने पसंद किया। New Yorker के David Denby के सुन्दर और सटीक आकलन को मैं अंग्रेजी में ही रखना चाहूंगा “That moment—an insolent piece of pop cruelty—put Eastwood, at the not so young age of forty-one, over the top. An actor may work for years without becoming a star, as John Wayne and Humphrey Bogart did throughout the nineteen-thirties. Then, suddenly, looks, temperament, and role all come together—as they did for Wayne, in “Stagecoach” (1939), and for Bogart, in “The Maltese Falcon” (1941)—and the public sees the actor, sees what it desires. He becomes not only a star but a myth, as Garry Wills defined it in his 1997 book “John Wayne’s America”—something that was true for the people who needed it to be true. What the public needed from Eastwood by the time of “Dirty Harry” was both physical and, in a convoluted way, moral.”  भारत में भी लगभग उसी समय एक असहज लम्बा साधारण पर बांध लेने वाले चेहरे मोहरे का एक  एक्टर भी हर तरह के रोल में अपना भाग्य आजमा रहा था पर ज़ंज़ीर में मूड, लुक, और टेम्परामेंट सब का संगम हुआ और लोग जो एंग्री यंग मैन को असली होते देखना चाहते थे और वो ही हुआ। अमिताभ ने भी एक युग की आकाँक्षाओं, अपेक्षाओं, भयों और विकृतियों को लम्बे समय तक जिया।  खैर, बैक तो ईस्टवुड।  

 


शारीरिक डील डौल और शैली के दृष्टिकोण से ईस्टवुड एक पूरे युग की आकाँक्षाओं के एक माकूल वाहन थे। 1930 में पैदा हुए ईस्टवुड 6 फुट 3 -4 इंच लम्बे और दुनिया के सबसे फिट 80 फिर अब 90 साल के नौजवान हैं। अपने चरम  पर उनके चलने में  एक animal grace, a big-cat tension था जो अभी भी झलकता है।  एक कुशल रिसोर्स मैनेजर के तौर पर ईस्टवुड इन सब खूबियों को परदे पर छाप छोड़ने के लिए बड़ी सफाई से जोत देते हैं।  उनकी दमदार उपस्थिति  में संसार की एक थकी पर गहरी समझ थी और इटालियन दौर के बाद एक मजबूत नैतिक केंद्र। पिछली शताब्दी के एक बहुत बड़े हिस्से में वो अमरीकन मर्दानगी और उसके individualism के सबसे बड़े प्रतीक बने रहे। व्यक्तिवाद का अकेलापन एक जरूरी साथी है।  क्लिंट ईस्टवुड इस अकेलेपन में एकांत की भव्यता थी। वो कभी भी  tortured soul वाले अकेलेपन को नहीं दर्शाते।  उनका एकांत एक मोंक का एकांत था न की किसी outcast का अकेलापन। उनके मूवमेंट्स  कम ज़रूर होते हैं पर वो भव्य होते हैं  उनकी ग्रेस और एलिगेंस कभी भी नहीं घटती है।  वो ऐसी फिल्मों में चमके जो self-referential - अपनी कलात्मक कृत्रिमता को लेकर सजग और अपनी भव्यता से पूरी तरह से वाकिफ थीं। लीन और टेलीग्राफिक फिल्म का मतलब स्टाइल की कमी कभी नहीं होता।  उनका कोर पर फोकस काफी विस्तृत और सुन्दर हो सकता है।  उनकी गहराई डाक्यूमेंट्री यथार्थवाद  की मोहताज नहीं है। 


हॉलीवुड में एक शब्द है क्लिंट मूवीज’. अपने सीमित पर बेहद प्रभावशाली अभिनय और ब्रांडिंग के स्टॉक के साथ ईस्टवुड ने अपने बेहद सफल करियर की कमान सम्हाली हुई है और कई दशकों से वो क्लिंट मूवीज’ निर्बाध तरीके से निकालते आ रहे हैं।  फिल्म के विषय के साथ एक धीमा लम्बा समय बिताने के बाद उनका फिल्म निर्माण प्रायः तेज, कुशल और बिना तामझाम के होता है।  उनकी कई फिल्में निर्धारित समय से पहले और बजट के भीतर समाप्त होने के लिए विख्यात  हैं। यह भी मशहूर है कि एक बार  उन्होंने केविन कॉस्टनर के डबल के साथ ‘ए परफेक्ट वर्ल्ड’ का एक शॉट फिल्मा लिया था  क्योंकि कॉस्टनर शूटिंग के लिए सेट पर  आने में देरी कर  रहे थे। ईस्टवुड  स्क्रीन के साथ-साथ सेट पर भी अपना दबदबा कायम रखते हैं।


स्क्रीन हिंसा के साथ उनका नाम हमेशा जुड़ा रहा है।  परदे पर होने वाली हिंसा के महिमामंडन से सम्बंधित निबंधों में और अध्ययनों में उनके फिल्मों की खूब बात होती है।  हालाँकि बाद की फिल्मों में उन्होंने काफी सफलतापूर्वक हिंसा की व्यर्थता को दिखाया है।  Unforgiven के इस आयाम के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है। उन्होंने महसूस किया कि हिंसा के खूनी पहलू अब उतना दम  नहीं रखते और आराम से कॉपी किये जा सकते हैं।  उन्होंने हिंसा की अधिक गहरी  समझ विकसित की और उनके चित्रण में हिंसा एक व्यर्थ की वास्तिवकता बन कर निकलती है जिसमे किसी का भला नहीं होता.  Gran Torino और  Unforgiven इसके बड़े उदाहरण हैं।  



राजनैतिक रूप से वो अमरीकी रिपब्लिक पार्टी के सदस्य और conservative विचारधारा के समर्थक हैं।  वो कैलिफ़ोर्निया के कार्मेल के मेयर भी रहे। इन की फिल्मों  की राजनीति  की अक्सर आलोचना होती है।  डर्टी हैरी में लोगों ने फासीवाद की झलक देखी।  2013 के रिपब्लिकन कन्वेंशन में खाली कुर्सी से उनका संवाद विचारधारा के आधार पर प्रलाप या क्लासिक कहा गया।  मोटा मोटा उन्होंने पोलिटिकल करेक्टनेस के अतिरेक के विरोध में खुद को खड़ा किया है।  New Yorker के रिचर्ड ब्रॉडी बिलकुल सही कहते हैं  ‘With  films ripped from the headlines (recent or past), such as “J. Edgar,” “Heartbreak Ridge,” “Flags of Our Fathers,” “Invictus,” and, “American Sniper,” Clint Eastwood has long been a conspicuously political filmmaker—the crucial American political filmmaker after John Ford (and before Spike Lee). But what makes a filmmaker political isn’t the choice of political subjects but, rather, the fullness of political thought, which extends to subjects that, at first glance, don’t seem political at all’.  एक फिल्मकार को उसके विषय राजनैतिक नहीं बनाते जितना कि उसकी राजनैतिक विचार की पूर्णता जिसको वो ऐसे विषयों पर भी लगा सकता है जो ऊपर से राजनैतिक नहीं लगते। उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प की नस्लवादी टिप्पणियों का समर्थन किया है और पोलिटिकल करेक्टनेस पर अधिक जोर देने के लिए वर्तमान पीढ़ी को ‘pussy generation’ कहा है। इसी तरह, उनकी फिल्मों में महिलाओं की भूमिका (बल्कि उनकी तुच्छता) एक आलोचना का  बिंदु रही है। पर 90 के दशक से उनके बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।  Line of Fire  से उनके द्वारा महिलाओं के संवेदनशील चित्रण की शुरुआत मानी  जा सकती जहाँ वो gender archetypes का मजाक उनका कैरीकेचर बना कर करते हैं।  उनके ग्रैन टोरिनो और मिलियन डॉलर बेबी,  जेंडर  और नस्लीय संबंधों में उनकी संवेदनशील पकड़ के पुख्ता सबूत हैं।  ऐसा लगता है कि वे इस मामले में  बहुत बारीक व्याख्याओं में फंसने से नफरत करते  है और 30, 40 और यहां तक ​​​​कि 50 के दशक अपने युवा और कम उलझे  पुराने दिनों को बरकरार रखना चाहते  है। वह संवेदनशील  है लेकिन हैं तो  पुराने समय के ही।


वह हॉलीवुड के शायद सबसे महान अभिनेता निर्देशक रहे हैं, केवल वुडी एलन ही उनके  करीब आते हैं और मेल गिब्सन का भी निर्देशक के रूप में एक विशिष्ट करियर है। हालांकि, कोई भी उनके करियर की लंबाई और गहराई के करीब नहीं आता है। ईस्टवुड Play Misty for Me यानि 1971 से निर्देशन कर रहे हैं और अधिकांश फिल्मे उनकी कंपनी ने ही निर्मित भी की हैं।  और तो और,  उन्होंने अपनी ज़्यादातर फिल्मों का संगीत भी दिया है। । किसी भी पैमाने पर वो इतिहास की सर्वाधिक सफल सिनेमा शख्सियत रहे हैं, शायद चार्ली चैपलिन को छोड़ कर।   


Unforgiven को तब 62 वर्ष के ईस्टवुड की विदाई फिल्म के तौर पर देखा जा रहा था एक last  hurrah ! तब से अब तक लगभग 30 वर्षों में उन्होंने 23  फ़िल्में बनायीं और 10 में तो उन्होंने अभिनय भी किया। 80 की उम्र के बाद उनके नाम 14 फ़िल्में हैं। Unforgiven और उसके बाद की फिल्मों ने आलोचकों का दिल और पुरस्कार दोनों प्रचुर मात्रा में जीते।    उनका निर्देशक के रूप में  body of work जैसे  Unforgiven, Invictus, Gran Torino, Hereafter, Mystic River, Changeling, American Sniper, Letter from Iwo Jima और  Sully उनको सिनेमा की सबसे ऊँची जमात में ले जाता है।Sully के बाद भी उन्होंने 15:17 to Paris, The Mule, Richar Jewell और Cry Macho जैसी फिल्मे दी।  Cry Macho  2021 में आई इसमें 91 वर्षीय ईस्टवुड ने निर्देशन के साथ अभिनय भी किया है।   उनके सधे  स्पर्श ने स्थायी महत्व की फिल्में दी हैं।  उन्होंने अपना करियर और स्टाइल खुद गढ़ा और खुद का आविष्कार और पुन: आविष्कार करने में वे निरंतर सफल रहे।एक सीधी और कसी हुई किस्सागोई की अपनी शैली के साथ  उन्होंने ईस्टवुड मिस्टिक, स्टारडम को एक बोझ  नहीं बनने दिया, लेकिन अपने माध्यम की सेवा में उसके निरंतर विस्तार में,  अपने स्टार व्यक्तित्व और अपनी शक्तियों का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने वेस्टर्न्स को गहराई दी, उन्होंने righteous stylized violence के लिए जगह बनाई और बाद में उन्होंने हिंसा की निरर्थकता को तलाशने वाली फिल्मों (Unforgiven) को भी एक स्थान दिलवाया।   रिडेम्पशन और reconciliation  (Invictus). नस्लीय मुद्दे  (Gran Torino) और दमदार महिला चरित्र  Changelings और  Million Dollar Baby, The Bridges of Madison County से फिल्म की संभावनाओं को आगे बढ़ाया. अपनी स्टार पावर का इस्तेमाल उन्होंने प्रयोगधर्मिता में किया। सबसे बड़ी बात कि उम्र ने उनकी फिल्मों के कसाव को बिलकुल भी कम नहीं किया। देव आनंद साहब वाला स्वांतः सुखाय फिल्मों  वाला दौर उनका अभी भी नहीं आया है।  उनकी सभी फिल्में, विशेष रूप से बाद की फिल्में सिनेमा की कहानी को आगे ले जाती हैं लेकिन वे मुख्यतः  रूप से 'क्लिंट मूवीज' बनी रहती हैं।. Lean, minimal and spare thing of unbounded beauty.  



Tuesday, 4 October 2022

हेनरी द तूलुज़ लोतरेक: हरम का एक बेकाबू चौकीदार


हेनरी द तूलुज़ लोतरेक पूरा नाम Comte Henri Marie Raymond de Toulouse-Lautrec-Monfa एक कुलीन परिवार से निकले हुए, बिगड़े  हुआ अरिस्ट्रोक्रैट थे  - बदनाम स्त्रियों और शराब  में आकंठ डूबे  हुआ । और वो एक बौने व्यक्ति भी थे - उनकी टांगें कभी भी पूरी नहीं बढ़ीं । साढ़े चार फुट से छोटे हेनरी अपने समय के शायद सर्वाधिक सनसनीख़ेज़ चित्रकार थे । कोई ऐसा वैसा समय नहीं वरन  the Belle Epoque - द ब्यूटिफ़ुल पिरीयड- सुंदर कालखंड । हम उनको आज भी प्रसिद्ध उनके पोस्टर्स और चित्रों से जानते हैं  जो आज भी अच्छे टेस्ट और कूल नेस के पर्याय हैं ।  उनको पूरी तरह समझने के लिए  उनकी ब्रांडिंग के असीम कौशल को स्वीकारना होगा । कैसे उन्होंने उन्होंने  पेरिस के बदनाम इलाक़े, विलासिता की एक ठीक ठाक वीभत्स प्रयोगशाला जिसकी प्रतिष्ठा हमेशा प्रश्न चिन्ह  के दायरे में थी, को  उठाया और उसको एक उच्च मध्यम वर्गीय अच्छी प्रतिष्ठा वाले मनोरंजन के अड्डे में बदल दिया। इसमें उनकी एक बड़ी सफलता सांस्कृतिक sophistication को सेक्स अपील के साथ पूरी स्वीकार्यता के साथ मिला ले जाना था । उनके प्रयासों से फ्रांस के अश्लील समझे जाने वाले कैन कैन डांस जिसमे क्लब का वो आखरी डांन्स ऊँची से ऊँची किक मारती नृत्यांगनाओं की ऊर्जावान पर अत्यधिक स्कैंडल समझी जाने वाली मादकता से भरा होता था और Montmartre के स्वछंद वातावरण और खास तौर से प्रसिद्द मूलां रूज़ Moulin Rouge को एक एलिगेंस, एक स्वीकार्य शोभा  दिलवाई।   उनकी महानता  इस बात में है की ये सब उन्होंने इस परिस्थिति की गुदगुदाती नग्नता और छिछोरेपन का तड़का, रेस्पेक्टेबिलिटी के खतरे से काफी करीबी फ़्लर्ट करते हुए भी बचाए रखा


तूलुज़ लोतरेक के अपने समय का सबसे बड़ा किस्सागो या क्रोनिक्लर होने में कोई संदेह नहीं है - 1890 और उसके आस पास का कालखण्ड, जब पेरिस विलासिता और बौद्धिकता का जगमगाता हुआ  केंद्र  समझा जाता था। उस माहौल में सबवर्सिव एंटी एस्टेबिलशमेंट पनप जरूर  रहा था पर उस समय को सिर्फ विद्रोहियों का स्वर्ण काल समझना भूल होगी. इस्टैब्लिशमेंट भी अपने पूरे शब्बाब पर था।  उस समय का हाई ब्रो कला क्षेत्र किसी भी हिकारत का शिकार नहीं था क्योंकि वो खुद बहुत हद तक अपने में सबवर्सन के लीक से लड़ने के कीटाणु छुपाये हुए था। पेरिस जो  ‘movable feast’ के नाम से जाना जाता था, अपने में कई विरोधाभास, अश्लीलता, उच्च कला और एक प्रयोगधर्मी माहौल लिए एक भव्य जादू सा रचता रहता था।  तूलुज़ लोतरेक इसको समझते थे।  वो एक ऐसे समय पर आये थे जब हाई ब्रो कला की पूजा भी एक ट्विस्ट के साथ होती थी और 'सेक्रेड' और 'प्रोफेन' इक गज़ब की 'अल्केमी' के लिए तैयार थे। उच्च संस्कृति ‘high culture’ बदनामी के दायरे से दो दो हाथ करने के लिए बेकरार थी।  बड़े बड़े कलाकारों का का झुण्ड स्टूडियो से निकल सड़क की गंदगी में लोट मारना  चाहता था और ‘असली’ जीवन जीना चाहता था।  आश्चर्य नहीं कि   Moulin Rouge और Montmartre के guilty pleasures का आकर्षण बढ़ रहा था।  माहौल सीधा सादा नहीं था पर हेनरी द तूलुज़ लोतरेक भी कोई सीधे बल्ले से खेलने वाले खिलाडी नहीं थे।  


कई बार 'करेक्टनेस' के चलते सभ्यतावश उनके बौने होने के तथ्य को जानबूझ कर नकारा जाता है।  पर ऐसे तथ्य नकारना एक बड़ी सच्चाई से मुँह मोड़ना होगा।  क्योंकि हेनरी द तूलुज़ लोतरेक के काम में उनका एक कुलीन बौना होना काफी अहम है।  सिर्फ साढ़े चार फुट से कम का एक बड़े घर का बौना ही इस विलास नगर की अँधेरी कोठरियों में ऐसी सहज पहुँच  बना सकता  था जो उनको एक ‘immediacy of perspective’ प्रदान कर सके।  उनकी उपस्थिति उन वैश्यालयों और ऐशगाहों में शायद इतनी सहज हो कि वो बिना किसी व्यवधान के fly on the wall बन कर सब कुछ दर्ज करते रहें।  उनका  असाधारणपन ही उनका बैक स्टेज पास था।  वो मध्यकालीन समय के हरमों के किन्नर चौकीदार की तरह से थे जिनको उनके किन्नर होने के वजह से ये  चौकीदारी सौंपी जाती थी। पर  तूलुज़ लोतरेक हरम के वो चौकीदार थे जो बड़े रुतबे का साथ बेकाबू हो चुका था।  


इस थोड़ा ट्रैजिक परन्तु उपयोगी वास्तविकता का एक परिणाम ये था कि  तूलुज़ लोतरेक के चित्रों में स्त्रियाँ काफी स्वतंत्र और पूरी तरह से गढ़े हुए व्यक्तित्व के साथ व्यक्त हुई हैं। ये उस समय के पेरिस के लिए भी उतना सामान्य  नहीं था।न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इस तथ्य को बखूबी  रखा है     “वे स्त्रियों को  stereotypical sex objects, जैसा शायद, Renoir. की कृतियों  में मह्सूस होता है। न ही Degas के जैसे स्त्री देह  को ले कर वो clinically detached हैं और न ही Gauguin की तरह वो उनको exotic बनाने का या Bouguereau की तरह उनको निष्कलंक देवी बनाने प्रयास करते हैं।” वो Jane Avril और  Yvette Guilbert  जैसी स्त्रियों को जीवंत करते हैं जो कम से कम स्टेज पर तो अपनी भाग्य विधाता खुद ही नज़र आती थीं और जिनकी 'चॉइसेस' और जीवन शैली उनके हाथ में ही दिखती है। विषयों और नर्तकियों के अलावा भी साधारण स्त्रियाँ चाहे वो थोड़ा फूहड़ या कम सुन्दर दिखें पर चित्रकार हमेशा उनको पसंद करता हुआ ही महसूस होता है।  

हेनरी द तूलुज़ लोतरेक का जन्म 1864 में ऐसे बड़े परिवार में हुआ था जिसकी वंशावली 'क्रूसेड' काल तक  जाती थी।  ऐसे परिवारों में नजदीकी रिश्तेदारों में शादियां होने से inbreeding का ही एक परिणाम  शायद हेनरी द तूलुज़ लोतरेक का बौनापन था। शराब और  बीमारियों के चलते हेनरी द तूलुज़ लोतरेक ने महज़ 36 वर्ष की आयु पायी।  शराब और बीमारियां का काफी श्रेय  एक घोर विलासिता के जीवन, जो उस सनसनीखेज  पेरिस के  क्लबों और वैश्याओं के बीच गुजरा था, को भी जाता है।  

मेरे प्रिय कला आलोचक टाइम मैगज़ीन के स्वर्गीय रॉबर्ट हियूस कहते है।  अगर जीवन को असंख्य क्षणभंगुर लम्हों में देखा जाए, जैसा की फोटोग्राफी में होता ही है , हर लम्हा किसी एक्टर का पोज़ या समय का एक स्नैपशॉट. इस थमी अनेकता को ही पकड़ने की कोशिश  लोतरेक ने की थी।  उनकी सटीकता और गति आज भी चौंकाती  है।  रॉबर्ट हियूस ने इसके अलावा रॉबर्ट लोतरेक की अपने सब्जेक्ट से एक जानी बूझी दूरी (विरक्ति या detachment नहीं) को भी अच्छा पकड़ा है।  “लोतरेक में कुछ भी expressionistic नहीं है। उनकी बेतहाशा  दुर्दशा वाकई पेंटिंग्स भी एक दूरी से आती हैं उनमे मानवीय absurdities का लेंस साफ़ रहता है। यहाँ उनके शब्द अंग्रेजी में लेना ही पूरा मज़ा देगा “one's admiration for Lautrec's craft, for the eggshell delicacy of spattered lithographic ink or the exact placement of a complementary color, …. it lasts just long enough to give a sense of wholly different organization—that the painting or the drawing is based on a precarious, swift sense of the real, exact but friable.”


एक कलाकार के तौर पर तूलुज़ लोतरेक अपनी  flourish से छा जाते है। वो एक तेज गति पर गेम खलेने वाले ऐसे खिलाडी हैं जो लगातार बदलती अवधारणों और दृश्यों में 'कम्फर्टेबल' हैं ।   अपनी आदिम जंगली प्रतिभा से वो विलासी पेरिस के झंझावात भरे माहौल को  अपने वश में करके तराश देते हैं, उसको 'रीब्रांड' कर देते हैं। इस गति में वो अपना रौब अपना मिज़ाज़ नहीं खोते, धीमेपन की सुरक्षा की उन्हें कोई दरकार  नहीं है और उनकी जोखिमभरी प्रयोगधर्मिता कभी भी लड़खड़ाती नहीं दीखती। 

  


ब्रेकिंग बैड की सहज श्रेष्ठता

      इतने सालों के बाद ब्रेकिंग बैड की तकनीकी श्रेष्ठता इतनी भी नहीं प्रतीत होती  कि उस पर पार न पाया जा सके।  गज़ब की फोटोग्राफी, इमोशंस के...