Tuesday, 4 October 2022

हेनरी द तूलुज़ लोतरेक: हरम का एक बेकाबू चौकीदार


हेनरी द तूलुज़ लोतरेक पूरा नाम Comte Henri Marie Raymond de Toulouse-Lautrec-Monfa एक कुलीन परिवार से निकले हुए, बिगड़े  हुआ अरिस्ट्रोक्रैट थे  - बदनाम स्त्रियों और शराब  में आकंठ डूबे  हुआ । और वो एक बौने व्यक्ति भी थे - उनकी टांगें कभी भी पूरी नहीं बढ़ीं । साढ़े चार फुट से छोटे हेनरी अपने समय के शायद सर्वाधिक सनसनीख़ेज़ चित्रकार थे । कोई ऐसा वैसा समय नहीं वरन  the Belle Epoque - द ब्यूटिफ़ुल पिरीयड- सुंदर कालखंड । हम उनको आज भी प्रसिद्ध उनके पोस्टर्स और चित्रों से जानते हैं  जो आज भी अच्छे टेस्ट और कूल नेस के पर्याय हैं ।  उनको पूरी तरह समझने के लिए  उनकी ब्रांडिंग के असीम कौशल को स्वीकारना होगा । कैसे उन्होंने उन्होंने  पेरिस के बदनाम इलाक़े, विलासिता की एक ठीक ठाक वीभत्स प्रयोगशाला जिसकी प्रतिष्ठा हमेशा प्रश्न चिन्ह  के दायरे में थी, को  उठाया और उसको एक उच्च मध्यम वर्गीय अच्छी प्रतिष्ठा वाले मनोरंजन के अड्डे में बदल दिया। इसमें उनकी एक बड़ी सफलता सांस्कृतिक sophistication को सेक्स अपील के साथ पूरी स्वीकार्यता के साथ मिला ले जाना था । उनके प्रयासों से फ्रांस के अश्लील समझे जाने वाले कैन कैन डांस जिसमे क्लब का वो आखरी डांन्स ऊँची से ऊँची किक मारती नृत्यांगनाओं की ऊर्जावान पर अत्यधिक स्कैंडल समझी जाने वाली मादकता से भरा होता था और Montmartre के स्वछंद वातावरण और खास तौर से प्रसिद्द मूलां रूज़ Moulin Rouge को एक एलिगेंस, एक स्वीकार्य शोभा  दिलवाई।   उनकी महानता  इस बात में है की ये सब उन्होंने इस परिस्थिति की गुदगुदाती नग्नता और छिछोरेपन का तड़का, रेस्पेक्टेबिलिटी के खतरे से काफी करीबी फ़्लर्ट करते हुए भी बचाए रखा


तूलुज़ लोतरेक के अपने समय का सबसे बड़ा किस्सागो या क्रोनिक्लर होने में कोई संदेह नहीं है - 1890 और उसके आस पास का कालखण्ड, जब पेरिस विलासिता और बौद्धिकता का जगमगाता हुआ  केंद्र  समझा जाता था। उस माहौल में सबवर्सिव एंटी एस्टेबिलशमेंट पनप जरूर  रहा था पर उस समय को सिर्फ विद्रोहियों का स्वर्ण काल समझना भूल होगी. इस्टैब्लिशमेंट भी अपने पूरे शब्बाब पर था।  उस समय का हाई ब्रो कला क्षेत्र किसी भी हिकारत का शिकार नहीं था क्योंकि वो खुद बहुत हद तक अपने में सबवर्सन के लीक से लड़ने के कीटाणु छुपाये हुए था। पेरिस जो  ‘movable feast’ के नाम से जाना जाता था, अपने में कई विरोधाभास, अश्लीलता, उच्च कला और एक प्रयोगधर्मी माहौल लिए एक भव्य जादू सा रचता रहता था।  तूलुज़ लोतरेक इसको समझते थे।  वो एक ऐसे समय पर आये थे जब हाई ब्रो कला की पूजा भी एक ट्विस्ट के साथ होती थी और 'सेक्रेड' और 'प्रोफेन' इक गज़ब की 'अल्केमी' के लिए तैयार थे। उच्च संस्कृति ‘high culture’ बदनामी के दायरे से दो दो हाथ करने के लिए बेकरार थी।  बड़े बड़े कलाकारों का का झुण्ड स्टूडियो से निकल सड़क की गंदगी में लोट मारना  चाहता था और ‘असली’ जीवन जीना चाहता था।  आश्चर्य नहीं कि   Moulin Rouge और Montmartre के guilty pleasures का आकर्षण बढ़ रहा था।  माहौल सीधा सादा नहीं था पर हेनरी द तूलुज़ लोतरेक भी कोई सीधे बल्ले से खेलने वाले खिलाडी नहीं थे।  


कई बार 'करेक्टनेस' के चलते सभ्यतावश उनके बौने होने के तथ्य को जानबूझ कर नकारा जाता है।  पर ऐसे तथ्य नकारना एक बड़ी सच्चाई से मुँह मोड़ना होगा।  क्योंकि हेनरी द तूलुज़ लोतरेक के काम में उनका एक कुलीन बौना होना काफी अहम है।  सिर्फ साढ़े चार फुट से कम का एक बड़े घर का बौना ही इस विलास नगर की अँधेरी कोठरियों में ऐसी सहज पहुँच  बना सकता  था जो उनको एक ‘immediacy of perspective’ प्रदान कर सके।  उनकी उपस्थिति उन वैश्यालयों और ऐशगाहों में शायद इतनी सहज हो कि वो बिना किसी व्यवधान के fly on the wall बन कर सब कुछ दर्ज करते रहें।  उनका  असाधारणपन ही उनका बैक स्टेज पास था।  वो मध्यकालीन समय के हरमों के किन्नर चौकीदार की तरह से थे जिनको उनके किन्नर होने के वजह से ये  चौकीदारी सौंपी जाती थी। पर  तूलुज़ लोतरेक हरम के वो चौकीदार थे जो बड़े रुतबे का साथ बेकाबू हो चुका था।  


इस थोड़ा ट्रैजिक परन्तु उपयोगी वास्तविकता का एक परिणाम ये था कि  तूलुज़ लोतरेक के चित्रों में स्त्रियाँ काफी स्वतंत्र और पूरी तरह से गढ़े हुए व्यक्तित्व के साथ व्यक्त हुई हैं। ये उस समय के पेरिस के लिए भी उतना सामान्य  नहीं था।न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इस तथ्य को बखूबी  रखा है     “वे स्त्रियों को  stereotypical sex objects, जैसा शायद, Renoir. की कृतियों  में मह्सूस होता है। न ही Degas के जैसे स्त्री देह  को ले कर वो clinically detached हैं और न ही Gauguin की तरह वो उनको exotic बनाने का या Bouguereau की तरह उनको निष्कलंक देवी बनाने प्रयास करते हैं।” वो Jane Avril और  Yvette Guilbert  जैसी स्त्रियों को जीवंत करते हैं जो कम से कम स्टेज पर तो अपनी भाग्य विधाता खुद ही नज़र आती थीं और जिनकी 'चॉइसेस' और जीवन शैली उनके हाथ में ही दिखती है। विषयों और नर्तकियों के अलावा भी साधारण स्त्रियाँ चाहे वो थोड़ा फूहड़ या कम सुन्दर दिखें पर चित्रकार हमेशा उनको पसंद करता हुआ ही महसूस होता है।  

हेनरी द तूलुज़ लोतरेक का जन्म 1864 में ऐसे बड़े परिवार में हुआ था जिसकी वंशावली 'क्रूसेड' काल तक  जाती थी।  ऐसे परिवारों में नजदीकी रिश्तेदारों में शादियां होने से inbreeding का ही एक परिणाम  शायद हेनरी द तूलुज़ लोतरेक का बौनापन था। शराब और  बीमारियों के चलते हेनरी द तूलुज़ लोतरेक ने महज़ 36 वर्ष की आयु पायी।  शराब और बीमारियां का काफी श्रेय  एक घोर विलासिता के जीवन, जो उस सनसनीखेज  पेरिस के  क्लबों और वैश्याओं के बीच गुजरा था, को भी जाता है।  

मेरे प्रिय कला आलोचक टाइम मैगज़ीन के स्वर्गीय रॉबर्ट हियूस कहते है।  अगर जीवन को असंख्य क्षणभंगुर लम्हों में देखा जाए, जैसा की फोटोग्राफी में होता ही है , हर लम्हा किसी एक्टर का पोज़ या समय का एक स्नैपशॉट. इस थमी अनेकता को ही पकड़ने की कोशिश  लोतरेक ने की थी।  उनकी सटीकता और गति आज भी चौंकाती  है।  रॉबर्ट हियूस ने इसके अलावा रॉबर्ट लोतरेक की अपने सब्जेक्ट से एक जानी बूझी दूरी (विरक्ति या detachment नहीं) को भी अच्छा पकड़ा है।  “लोतरेक में कुछ भी expressionistic नहीं है। उनकी बेतहाशा  दुर्दशा वाकई पेंटिंग्स भी एक दूरी से आती हैं उनमे मानवीय absurdities का लेंस साफ़ रहता है। यहाँ उनके शब्द अंग्रेजी में लेना ही पूरा मज़ा देगा “one's admiration for Lautrec's craft, for the eggshell delicacy of spattered lithographic ink or the exact placement of a complementary color, …. it lasts just long enough to give a sense of wholly different organization—that the painting or the drawing is based on a precarious, swift sense of the real, exact but friable.”


एक कलाकार के तौर पर तूलुज़ लोतरेक अपनी  flourish से छा जाते है। वो एक तेज गति पर गेम खलेने वाले ऐसे खिलाडी हैं जो लगातार बदलती अवधारणों और दृश्यों में 'कम्फर्टेबल' हैं ।   अपनी आदिम जंगली प्रतिभा से वो विलासी पेरिस के झंझावात भरे माहौल को  अपने वश में करके तराश देते हैं, उसको 'रीब्रांड' कर देते हैं। इस गति में वो अपना रौब अपना मिज़ाज़ नहीं खोते, धीमेपन की सुरक्षा की उन्हें कोई दरकार  नहीं है और उनकी जोखिमभरी प्रयोगधर्मिता कभी भी लड़खड़ाती नहीं दीखती। 

  


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