Friday, 30 September 2022

मिलान कुंदेरा- आत्मा का उशृंखल संवाद

मिलान कुंदेऱा लम्हों के लेखक है उड़ते से क्षणभंगुर मनोभावों और जज्बातों के। हालाँकि वो अपने तरीके को ‘meditative interrogation’ या ‘interrogative meditation’ कहना पसंद करते हैं पर आनंदमय विलम्बित meditation होता तो क्षणभंगुर मनोभावों और जज्बातों के बारे में ही है।  हो सकता है ये मैडिटेशन किसी महिला के गुड बाई करते हुए हाथों की लहर पर हो या किसी की नाभि के ऊपर पूरा दार्शनिक चिंतन। इन उड़ते हुए सूक्ष्म लम्हों में कुंदेऱा कई उम्रें बुन लेते हैं।

पुरोधा लेखकों के ढलते हुए दिनों के रचना कर्म में अक्सर एक प्रवृत्ति पायी जाती है।  अपनी नैसर्गिक महानता और शायद ‘मस्क्युलर मेमोरी’ के चलते एक अच्छे लेखन के सभी तत्व तो प्रायः अपने स्थान पर होते हैं और यत्र तत्र महानता  की बूँदें भी बिखरी  होती हैं और एक अच्छी रचना सामने रहती है। पर ऐसे महान लेखकों का जीवन आसान नहीं होता क्योंकि उनकी हर रचना उनकी शिखर रचनाओं, जो अभ्यास से कम बल्कि अपार कौशल और उनकी आदिम और बेहद अल्हड़ मौलिक प्रतिभा से निकली होती हैं, के मापदंड पर ही नापी जाती हैं और अक्सर फीकी पायी जाती हैं।शायद इन रचनाओं में इन लेखकों की शुरुआती अमर कृतियों जैसे उनकी आत्मा अपने पूरे शबाब में नहीं झांकती है। उनके मुरीद उनकी इन ढलान के पन्नों में एक nostalgia के चलते लेखक और शायद अपने साझा युग की चिंगारियों को ढूँढते हैं और किसी भी दोयम दर्जे की चमक पर काफ़ी आनंद में आ जाते हैं। जो भी हो मेरे लिए तो ऐसे सितारों के सारे प्रयास एक बड़ा मौका होते हैं। nostalgia की अपनी व्यर्थता और उपयोगिता -utility and futility होती है पर एक जबरदस्त आनंद और अपील तो निःसंदेह होती होती है।  जब ‘Festival of Insignificance’ 13 साल के लम्बे अंतराल के बाद इस सदी के उनके पहले उपन्यास के तौर पर आयी थी तो वो मेरे जैसे प्रशंसकों के लिए अपना fandom चमकाने का बड़ा मौका था।  हालाँकि 115 पेज के टेलीग्राफिक उपन्यास का बुढ़ापा स्पष्ट है और अभी ढलते हुए सितारों के बारे में जो भी बातें मैंने कही गयी हैं वो इस पर भी लागू  होती हैं और ये ‘Unbearable Lightness of Being’ के स्तर पर नहीं है पर इस उपन्यास को भी हलके में लेना भूल होगी और खुद को एक ‘कंडेंस्ड ब्रिलियंस’ से वंचित करना होगा।   

‘Festival of Insignificance’ कुंदेरा की मूलभूत खूबियों का एक छोटा पर स्टार्क रिमाइंडर है। कैसे उनकी त्वरित छोटे क्षणों/फीलिंग्स /परिस्थितियों और कॉन्सेप्ट्स का अन्वेषण करने की महान  क्षमता और कैसे ये त्वरितता और सूक्ष्मता अपने niche स्वरुप के बावजूद जीवन के बड़े कैनवास को समझने और गढ़ने में हमारी मदद करती है।  कुंदेरा के पास मनोभावों और परिस्थितियों में अंतर्निहित तत्वों को पकड़ने की आलौकिक क्षमता है और वो इस समझ पर अपनी meditative interrogation की तकनीक बड़े ही प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल करते हैं।  इस लघु उपन्यासिका में उन्होंने insignificance को जीवन के सतहीपन और उसकी महत्वहीनता को जीवन के एक leitmotif, एक बार बार उठ खड़े होने वाले विचार, के तौर पर इस्तेमाल किया है और एक खासी मनोरंजक किताब लिख दी है।  अपने सूक्ष्म आकार के बावजूद ये उपन्यास एक कट्टर कुंदेरा फैन की प्यास निपटाने में सक्षम है।  हालांकि इसको पढ़ते हुए बरबस आखरी दिनों के तेंदुलकर की याद आ जाती है जब वो अपने शरीर के यथार्थ के हिसाब से पर्सेंटेज गेम खेलते थे।  एक रिटायरमेंट के करीब वाली सावधानी, मस्क्यूलर मेमोरी का आराम न की युवा प्रतिभा की जंगली गर्मी का अहसास। ‘Festival of Insignificance’ में 'एसेंशियल कुंदेरा' के सारे तत्व मौजूद हैं पर शायद एक कुंदेरा नावेल कुछ ऊपर की चीज़ होता है।  इतना सब कुछ कहने के बाद भी एक बात तो सच है की एक मास्टर ब्लास्टर हमेशा डिलीवर करता है।  उसकी हर पारी एक संजोने का सबब होती है।  एक स्तर हमेशा दीखता है चाहे मास्टर 'स्लीप वाक मोड' में ही क्यों न हो।


कुछ भी हो, कई तबकों में मिलान कुंदेरा के  आज के समय में महत्व और प्रासंगिकता पर सवाल तो उठने शुरू हो गए हैं।  गार्डियन अखबार के एक लेख ‘How important is Milan Kundera today? में Jonathan Coe लिखते हैं “Festival of Insignificance निश्चय ही typical Kundera तो है मगर classic Kundera नहीं। जहाँ उनकी मृदुल playful wisdom टिमटिमाती तो है पर ये बड़ा विस्मयकारी होता अगर  इसमें उनकी ढलान बिलकुल भी न झलकती।”   Jonathan Coe आगे लिखते है की यदि हम कुंदेरा की किताबों के कवर को देखें तो उन पर सलमान रुश्दी, Ian McEwan इत्यादि लेखकों के 30 साल से भी ज़्यादा पुराने उद्धरण और testimonials  पाएंगे।  यह हमें याद दिलाता है कि कुंदेरा की ख्याति 80  के दशक में अपने चरम पर थी जब हर कोई The Book of Laughter and Forgetting और  The Unbearable Lightness of Being के साथ ही दिखाई पड़ता था।  तब चेक कम्युनिज्म ज़्यादा पुराना  नहीं था और कुंदेरा की खिलन्दड़ी उश्रृंखलता को एक 'ग्रिम बैकड्रॉप' मुहैया कराता था।  अब ये देखने वाली बात है कि बिना इस पृष्ठ भूमि के कुंदेरा के डार्क मजाकिया और कई बार उश्रृंखल आत्मिक अन्वेषण की वेदना अभी  भी उतनी ही प्रसांगिक और उपयुक्त है या नहीं। उस दम  घोंटू माहौल में शायद जो खिलंदड़ापन और कुछ हद तक अश्लील नंगापन, अभिव्यक्ति की हुंकार लगते थे, क्या आज, जब उस माहौल को याद करना इतना आसान नहीं रह गया है, कुंदेरा उतने ही प्रभावी और प्रासंगिक हैं? 


ये सब शायद सही हो और कुंदेरा का लेखन अब उतना नया और उत्तेजक शायद न लगे पर इस से उनकी रचनाओं की और उनकी महत्ता में कोई कमी नहीं आती है।  वो एक महान उपन्यासकार और साहित्य मर्मज्ञ हैं. अपने genre और शैली के तो वो जन्मदाता ही कहे जायेंगे। उनकी मुख्य रचनाएँ अपने समय की सीमा तोड़ कर एक सर्वकालिक और सार्वभौमिक महत्त्व रखती हैं।  उनकी सर्वोत्तम  रचनाओं में एक परीक्षित जीवन का बौद्धिक और भावनात्मक आनंद घुला होता  है। उनकी व्यक्ति की चेतना के साथ इतिहास और राजनीति  के अन्तर्सम्बन्धों को स्थापित करने की क्षमता में एक ओपेरा की एक  आनंददायक भव्यता है।  एक भावनात्मक परिष्कार जो psycho-philosophical fiction के no man land में मंडराता रहता है।  


कुंदेरा ने औपन्यासिक अन्वेषणा के औज़ारों को बड़ी कुशलता से अपनी पसंद के मुद्दों पर deploy किया है जिसका साहित्यिक असर अकसर जबरदस्त रहा है।  उनके तथा कथित middle  पीरियड के काम पर उनकी ख्याति टिकी  हुई है। The Book of Laughter and Forgetting, The Unbearable Lightness of Being और  Immortality विश्व साहित्य की किसी भी जमात में सम्मान की पदवी के हक़दार हैं।  उनकी इन्क्वायरी की तीक्ष्णता, और जीवन की खुरदरी सच्चाइयों पर उनकी एक हलकी, सब कुछ समझती, मुस्कुराहट इन किताबों को नायाब बनाती हैं।  अपनी सारी चंचलता और विडम्बनाओं के मध्य ये उपन्यास ज़रूरी बने रहते हैं तो उसकी वजह है, कुंदेरा की मनोभावों और आत्मा की दुनिया पर एक संवेदनशील पकड़।  अच्छा साहित्य अपनी  सारी highbrow शास्त्रीयता के बावजूद हमेशा ग्राह्य रहता है।  कुंदेरा का साहित्य भी अपनी  ‘interiority’ और दार्शनिकता के बावजूद पाठक को काफी जाना पहचाना और करीब लगता है। 


कुंदेरा ने अपनी किताबों में अपना एक लहज़ा और एक वॉयस प्राप्त  की है।  वो गंभीर होने के दोष से पूरी तरह मुक्त है उनकी playful wisdom, European sensibilities और अप्रतिम ज्ञान उनको थोड़ा formidable  ज़रूर बनाता है पर वो नीरस और गंभीर कभी नहीं लगते हैं। ये चँचल शरारती टोन और वॉयस उनके लिए किसी भी डोग्मा के विरुद्ध कवच का काम करता है।  ऐसे व्यक्ति कभी भी सेल्फ पैरोडी के शिकार नहीं होते और अपनी वाणी की जड़ता से हमेशा बचे रहते हैं।  इन गुणों के साथ कुंदेरा  बड़े आत्मविश्वास के साथ खोई हुई संभावनाओं के खनन के लिए हमेशा स्वत्रंत रहते हैं।  


ये खनन आवश्यक तौर पर interrogative ही होता है।  उनकी किताबों में प्रश्नात्मक माहौल छाया रहता है और एक इन्क्वायरी सी चलती रहती है।  किसी भी मुद्दे या विचारधारा से unambiguously न जुड़ने की जिद का भी पूरी शिद्दत से पालन किया जाता है।  बड़ी से व्यापक इन्क्वायरी भी जो उत्तर देती है उनमें भी  work-in-progress की एक फील होती है।  ये उनका कोई ढीलापन या tentativeness नहीं है।  ये तो बस एक सहज स्वीकृति है की मानवीय मुद्दे अक्सर किसी अंतिम परिणीति पर नहीं पहुंचते हैं। 


कुंदेरा की relevance का रिक्विम या मर्सिया अक्सर इसलिए भी पढ़ा जाता है कि उनकी स्ट्रेंथ जैसे की irony, दार्शनिकता, निबंधात्मक शैली , ‘interiority’ कई बाद के लेखकों जैसे Julian Barnes, Alain de Botton और  Slavoj Žižek में  काफी सशक्त हो कर अभिव्यक्त हुई है।  पर ये तो कुंदेरा की महानता  का ही परिचायक है कि वो ऐसी महानता को इंस्पायर कर पाए। एक पायनियर या प्रवर्तक के तौर पर उनकी श्रेष्टता असंदिग्ध है।  


कुंदेरा विश्व साहित्य की अमूल्य  धरोहर हैं।  उनका योगदान उपन्यास की महान  परंपरा को आगे ले जाता है।  हिंदी के निर्मल वर्मा उनके समकालीन होने के साथ साथ उनके सरोकारों और शैली के बेहद करीब हैं और उतने ही मोहक हैं । इस मोहकता और एक तरह की व्यक्ति केन्द्रीयता की वजह से उनकी रचनाओं की गहराई और मानव जीवन के लिए उनका महत्व अक्सर पूरी तरह से समझा नहीं जाता है।   निर्मल वर्मा की तरह ही कुंदेरा को पूरी तरह समझने के लिए हिसाब किताब से ऊपर उठ रागवृत्ति के लिरिकल स्फीयर में जाना होगा और अपने ह्रदय को एक बेलौस नग्न आनंद को पूरी गहराई से अनुभव करने की अनुमति देनी होगी।  जिसने भी ये कर लिया उसके लिए कुंदेरा अप्रासंगिक हो ही नहीं सकते।  

 


Monday, 26 September 2022

एरिक क्लैप्टन: एक उन्मादित सौम्यता

 



Photo courtesy Spin.com

 

एरिक क्लैप्टन और उनके समकालीन म्यूजिक गॉड्स, कम से कम वो जो अभी भी हमारे बीच हैं जैसे कि कार्लोस  सैन्टाना, बॉब डायलन या रोलिंग स्टोन्स संगीत की जीवन दायी शक्तियों के जीवित उदाहरण हैं।  ये सितारे पूरी दुनिया की विरासत हैं। इनकी लम्बी संगीत की पारी भाग्य, प्रतिभा और सबसे बढ़कर एक दुर्लभ  बुद्धिमत्ता के चलते ही संभव हुई वर्ना इन सब दैवीय प्रतिभा संपन्न महानुभावों की बला की अधिकताओं ने कोई कसर तो नहीं छोड़ी थी।  पृथ्वी पर उनकी निरंतर उपस्थिति को में दैवीय प्रतिभा और दैवीय कृपा का सामान अनुपात में योगदान माना जा सकता है। बहुत संभव था की ये सब भी 3 Js जिमी हेंड्रिक्स, जिम मॉरिसन और जेनिस जोप्लिन की राह पकड़ लेते जो प्रतिभा के फड़कते आदिम अंगारे थे  जो खुल के जले और अपने 28 वें जन्मदिन से पहले ही अपनी अधिकतओं की बलि चढ़ गए।  लोग इन महान प्रतिभाओं के छोटे जीवन में के एक जोश भरी इकोनोग्राफी भी देखते हैं पर मेरे मन का प्रमुख विचार उदास होता है - What a waste . कितना कुछ इन बड़ी जिंदगियों के इतना छोटे होने से खो गया है वो तब दर्दनाक तरीके से स्पष्ट होता है जब हम इनके समकालीनों की उपलब्धियों को देखते है कि कैसे कार्लोस  सैन्टाना, बॉब डायलन या रोलिंग स्टोन्स और ऐसे अनेक संगीत के बड़े नामों ने 3J  के जाने के बाद बहुत लंबा जीवन पाया और संगीत के आयामों को नया विस्तार दिया। MTV, स्ट्रीमिंग या यूट्यूब जैसे नए माध्यम से उन सभी को फायदा हुआ। कल्पना कीजिए कि जिमी हेंड्रिक्स ने अपनी मृत्यु के बाद के लगभग 50 वर्षों में हमें क्या क्या  दिया होता अगर ये अद्भुत प्रतिभा अपने समय के अतिरेक का शिकार न हुई होती।  

एरिक क्लैप्टन भी, ऐसे असामयिक अंत के लिए एकदम सही पात्र प्रतीत होते हैं। जब वह मुश्किल से 20 वर्ष के था, तब ही लंदन में दीवारों पर  ‘क्लैप्टन इज गॉड’ के नारे  पर उभरने शुरू हो गए थे।  इस रॉक गॉड के दर्जे ने और उनके नशे से लबरेज समय ने जो कुछ भी उनकी तरफ फेंका उसको उन्होंने पूरी शिद्दत से उपभोग किया।  ऐसे में उन्होंने कई बार 'स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक' भी  दी।  ईश्वरीय कृपा से सही समय पर उनको समझ आयी।  शराब और ड्रग्स की धुंध में, उनके मुताबिक, उनको ‘grace of despair’ यानी नैराश्य की कृपा मिली।  उस धुंधलके में उन्हें स्पष्ट होने लगा कि वो  एक व्यसनी, जुनूनी और बेचैन व्यक्तित्व के स्वामी हैं  और मृग तृष्णा उनको नाच नचाती रहती है।  उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपने जुनूनी उत्साह के बारे में लिखा था कि  जैसे ही वांछित वस्तु उसके कब्जे में आती थी, वैसे ही वो फीकी पड़ जाती थी। मादक द्रव्यों के सेवन या संगीत व्यक्तित्व दोनों के ही दृष्टिकोण से वो एक अनवरत भटकाव की स्थिति में थे। इस भटकाव से कोई निजात नहीं थी  न तो यार्डबर्ड्स जहाँ से वो निकाले ही गए थे, न ही जॉन मायल के ब्लूज़ब्रेकर्स के साथ, न ही क्रीम या ब्लाइंड फेथ के साथ। हमेशा बेचैन रहने वाले क्लैप्टन एक अंतहीन प्रलाप के साथ अपने अगली निराशा का पीछा सा करते दीखते थे।  अच्छी  बात यह थी कि वह अपने इस दोष से अवगत थे और समय आने पर अपने बचाव के लिए इससे निपटने के लिए उनकी आत्मा में पर्याप्त संसाधन और ऊष्मा थी। इस समझ  ने उन्हें बचा लिया। उनका संगीत, उनका जीवन या उनका सामान्य दृष्टिकोण उनकी इस  कमी की जटिलताओं से निपटने और इसके घातक परिणीति से बचने से ही अपने आकार में आये।  एक निर्विकार  स्वीकृति उनका एक स्थायी  व्यक्तित्व  बन गया है- नपा तुला  और अप्रभावित, बहुत कुछ उनके गिटार की धुनों तरह।

 

हालाँकि ये भी सच है की इस अँधेरे दौर ने उनको उस घातक मादक वातावरण से मिलने वाली प्रेरणाओं के लिए तैयार भी कर दिया था और हर अर्थ में वो 60s की पीढ़ी की सभी खूबियों को भी अपने भीतर लिए हुए हैं।  साथ ही उनकी समय पर घोर विनाश से अपने कदम खींच लेने की समझ  या ताकत उनकी एक खास तरह की विनम्रता की और भी इशारा करती है जहाँ अपनी कमजोरियों को स्वीकारा गया है।  ये  एक कुछ मासूम और थोड़ा ठिठका सा आत्म संवेदन, जो उनके समकालीन रॉक गॉड्स में पूरी तरह से नदारद था, उनकी जान बचने का सबब बना और उनके संगीत की दीर्घ आयु, विविधता और व्यावसायिक व्यवहार्यता और  सफलता का कारण भी। उदाहरण के तौर पर अपनी आरंभिक ब्लूज को लेकर अपनी कट्टरता के बावजूद भी दर्शकों और व्यावसायिक स्वाद की मांगों के लिए अपनी संगीत शुद्धता से समझौता करने में कभी भी नहीं हिचकिचाए।  उनकी विराट प्रतिभा ने कभी भी इन समझौतों को सस्ता नहीं होने दिया हमेशा उनका मान रखा।     

 

 जब उन्होंने 1985 में 'बिहाइंड द सन इन मोंटसेराट' एल्बम रिकॉर्ड किया, तो रिकॉर्डिंग लेबल  ने इसे स्तर का नहीं पाया  पाया और उनको मुँह पर इतना कुछ कह भी दिया। उनकी प्रतिक्रिया उनके व्यक्तित्व और उनके संगीत के बारे में बहुत कुछ बताती है। उन्होंने कहा, " नाराज होने के बजाय, मैंने चालाकी  काम लिया और एक नई, अधिक स्वीकार्य  शैली के लिए सहमत हुआ  जो शायद मेरे  कई पुराने ब्लूज़ दोस्तों के स्वाद के अनुरूप नहीं थी"। वह इस समझौते की वास्तविकता जानते थे और उसमें छुपे विवाद और क़ीमतों को भी समझते थे । उनकी प्रतिभा और विनम्रता ने उन समझौतों को एक सीमा के नीचे नहीं जाने दिया और उनके एक तरफ उनके सिद्धांतों और दूसरी तरफ़ दर्शकों और व्यावसायिक स्वाद और उनकी सफलता के बीच एक फ़ायदेमंद सामंजस्य, कला और व्यक्ति दोनों के लिए,  प्राप्त करने में सफल हुई । लाभ स्पष्ट और  विशाल था, न केवल रिकॉर्ड बिक्री के मामले में बल्कि उनकी रेंज के विस्तार में भी। इस ब्लूज़ शुद्धता वादी  के काम में ब्लूज़, हार्ड रॉक शामिल है , रग्गे (आइ शॉट द शेरिफ), ballads (टीयर इन द स्काई, यू लुक वंडरफुल टुनाइट) और बीच-बीच में बहुत सारा  ‘सेल आउट’  संगीत जिससे उन्होंने थोड़ी वेदना और बहुत सारी रेकर्ड बिक्री का अनुभव किया । 

 

उनके अपनी कमज़ोरियों और व्यसनों से इस लड़ाई ने उनके व्यक्तित्व में संघर्ष की चमक और विनम्रता का ठहराव ला दिया था । अहं से विहीन एक संगीत का वाद्य  जो जूनियर आर्टिस्ट्स के साथ भी साइड मैन बन सकता है , एक पुरोधा जो दूसरे गायकों के कवर गाने में कैसी भी शर्म नहीं महसूस करता है , एक सुपर स्टार जो कभी भी फ़ैन बॉय बन सकता है, एक शुद्धता वादी जिसके लिए कोई भी संगीत वर्जित नहीं होता और एक धुत्त विलासी जो पालतू घरेलू पन में भी उतना ही खुश है । एक सुरक्षित ‘भगवान’ ही भगवान की पदवी को छोड़ सकता है और आराम महसूस कर सकता है । 

 

तुरंत पहचानी जाने  वाली धुनों की दुनिया में अक्सर क्लैप्टॉन के संगीत को अस्मिता विहीन भी कहा गया है । परंतु उनका  संगीत उत्कृष्टता की अनेक परतों से पैदा हुआ है । उनके 70 वें जन्मदिन के एक आकलन में कहा गया था ‘अन्य प्रसिद्ध गिटारिस्ट के अपने पांच फेमस लिक्स होते हैं और उन सब को क्लैप्टन आत्मसात कर चुके होते हैं अब क्लैप्टन के पास उन ओरिजिनल ब्लू प्रिंट्स का ख़ज़ाना  है अतः उके पास अब दर्जन और फिर दो दर्जन ब्लू प्रिंट्स हो जाते हैं और फिर वो उन सब को ब्लूज के पेंटा टॉनिक स्केल पर लिंक कर असीमित ट्विस्ट्स और विगल्स पैदा करते हैं जिनको वो पूरी कुशलता से छेड़ते हैं।  ये एक संगीत की ईमारत है जो सीमाओं की छेनी  से नहीं छीली हाई है बल्कि निरतर बढ़ती समृद्धि से निकलती है।   

 

 

उनकी शांत  शैली से धोखा खाना बहुत आसान है। उनके व्यक्तित्व में एक सौम्यता  और एक संगीत शैली है जिसका उद्देश्य अपनी गहराई से प्रभावित करना है न की हरकतों से चकाचौंध । एरिक क्लैप्टन ने हैंड्रिक्स, पेज, बेक, बीटल्स, फ्रैंक ज़प्पा, बीबी किंग, बडी गाय, रोलिंग स्टोन्स के साथ साथ कई  नई प्रतिभाओं के साथ संगत की है। उन्होंने हैंड्रिक्स और उनके बैंड साथी डुआने ऑलमैन जैसी प्रतिभाओं का सदा सम्मान किया। वह खुद हालांकि, कम दिखावटी  लेकिन शायद ज़्यादा गहरी प्रतिभा है। उनका इम्प्रोवाइजशन जैज़ जैसी त्वरित प्रेरणा  से नहीं वरन उनका वो अनजाना अपरिभाषित तरल ट्विस्ट, कौशल की ठोस एकत्रित सम्पदा से निकलता है।   यह कम दिखावटी पर ज़्यादा गहरा है एक गहराई जो वर्षो की साधना और प्रतिभा का संगम है न की किसी जंगली प्रतिभा की कोई अल्हड चिंगारी।   क्लैप्टन इसे  बहुत ही सूक्ष्मता से समझते हैं । जब उन्हें जॉन लाफलिन के इस विलाप पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया कि वह (लाफलिन) वह सब कुछ नहीं बजा सकते  जो वह सोच सकते  है, एरिक क्लैप्टन ने कहा "मैं ' जॉन के बिल्कुल विपरीत हूँ , वह शायद उन चीजों के बारे में सोच सकते  है जो वह बजाना  चाहते हैं  है और नहीं कर पाते , और मैं कुछ भी नहीं सोच सकता! मेरा बजाना  मेरे सोचने की क्षमता से बहुत आगे निकल जाता है। इसलिए मैं कभी जैज संगीतकार नहीं बन सका, क्योंकि मैं इसे अपने दिमाग में संगीत को नहीं सुन सकता। मेरा संगीत सीधा  बस मेरे हाथ में जाता है।" वह अपरिमित  गहराई के संगीतकार  हैं, उनका नयापन  अभ्यास  से आता है और गहराई से आगे बढ़ता है। नवीनता, वर्तमान के, जो मौजूद है, के ढेर से उभरती है। ऐसा लगता है कि क्लैप्टन के गिटार और उसकी आंतरिक भावनाओं के बीच एक खुला चैनल है जिसे न तो उम्र और न ही नकल काट सकती है। हो सकता है कि उनका लक्ष्य चकाचौंध करना न हो, लेकिन शुद्ध संगीत का भंडार और असंख्य प्रभावों का मधुर सृजनशील टकराव नियमित रूप से चौंकाने वाले क्षण पैदा करता है।

 

ऐसे में संभव है की किसी को ये धोखा हो जाये की उनका संगीत आत्मा से रहित केवल तकनीक और कला है। वो अनवरत अपनी कला को साधने उसे चमकाने में लगे रहे है, इसकी मुख्य वजह ये है की संगीत उनके लिए अभिव्यक्ति के साथ साथ हीलिंग का भी एक जरिया है।  उन्हें अपने नैराश्य, दुःख और लगभग जानलेवा व्यसनों में संगीत का सहारा मिला।  लायला और टीयर्स इन हेवन (उनका 4 साल के  पुत्र कोनोर की दुर्घटनावश 53 मंजिल की खिड़की से गिर कर मृत्यु हो गयी थी और ये गीत संगीत के माध्यम  से उस विराट दुःख को अभिव्यक्त और समझने का एक प्रयास माना जाता है) ऐसे ही गीत हैं। क्लैप्टन खुद कहते हैं “मुझे मालूम था की अगर मैं अपने संगीत के साथ रहूँगा तो वो मुझे शांति देगा और मेरा उपचार भी करेगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझे क्या सोचना चाहिए व क्या महसूस करना चाहिए ये सुन्नता शायद मेरे शरीर  का डिफेन्स मैकेनिज्म था क्योंकि उस परिस्थिति में पागलपन मुँह बाए खड़ा था।  एकमात्र रास्ता था की में संगीत बजाऊं” संगीत उनका रक्षा कवच था उनका ईंधन था वो आगे कहते हैं “जब मैं अच्छा बजा रहा होता हूँ तो मुझे कैसा डर? उस क्षण में मैं बिलकुल सुरक्षित हूँ। संगीत को जब हम मौका देते हैं तो उसक ये गुण और पुख्ता हो कर सामने आता है” उनके बाद के दिनों के शांत सौम्य व्यक्तित्व के पीछे निराशा और दुःख  की गहरी खाई  और एक मोंक की गहरी साधना है जिसने उनके संगीत को अद्भुत गहराई और एक राहत  भरे ठहराव के साथ एक कुलीन शिष्टता भी दी है ।      

 

 

 

ब्लूज की विधा क्लैप्टन का असली घर है। उनके अनुसार ब्लूज ‘आत्मा का असली संगीत है जिसमे बुद्धि का कोई स्थान नहीं है” ब्लैक प्लांटेशन मजदूरों, जो की ग़ुलामी का ही रूप था, के अमरीकी संगीत में रूचि लेने वाले वो पहले ब्रिटिश संगीतकारों में से एक थे।  उनका इस विधा में श्रीगणेश मड्डी  वाटर्स और उनके जैसे संगीतकारों से हुआ।  एक अकेले युवक को जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि खासी जटिल थी (एक teenager माँ के अवैध पुत्र जिनको उनके दादा दादी ने पाला दादा दादी वह बहुत दिनों तक अपना माता पिता और माँ को अपनी बहन समझते रहे) के लिए ब्लूज में एक शरण थी, एक राहत थी।  एक परेशान आत्मा को इस संगीत के नैराश्य में  अपने दुःख की झलक दिखी।  ब्लूज रेडेम्पशंन तड़प और आनंद का एक संवाद है। गार्डियन अखबार में उनकी 70 वे जन्मदिन के लेख में उन्होंने अपनी यात्रा जिसमे कैसे उनका अतुलनीय स्टाइल ज्ञान, कला और अनुभवों को लगातार जमा करते रहने से निकला है।   लेख में क्लैप्टन कहते हैं कि इंग्लैंड में पॉप और रॉक का बोलबाला था और वहां का रॉक स्कॉटी मूर और क्लिफ गैलप जैसे गिटारिस्ट की परंपरा में था।  ब्लैक परंपरा की तरफ जाना मेरा एक सोचा समझा निर्णय था।  मेरी मुख्य कोशिश इस परंपरा को चक बेरी रॉक फॉर्मेट में ढालने की थी” वो आगे कहते हैं की “ब्लूज एक भाषा है जिसे ध्यान दे कर सीखना पड़ता है। सीखना  फीलिंग से ज़्यादा ये एक एक्शन है। इसमें लाइब्रेरी जाना और जो कुछ भी संभव हो उसको सुनना और समझना शामिल है।  वो फिर एक बार अपनी excellence by accumulation वाली लाइन पर लौटते हैं “एक बार जब जो भी संभव है सब कुछ  सुन समझ लिया और हमने अतीत के बोझ और ब्लूज़ की संगति को अपना सर्वोत्तम प्रयास दे दिया होता है और हम अपना सारा रिसर्च और साधना कर चुके होते हैं, तब अगर संगीत से अगर तुम्हे सच्चा प्यार है, तो तुम उसको तुम अपने तरीके से अभिव्यक्त करने लगोगे।  ऐसा न होना असंभव है, वो कहते हैं।  उनके व्यक्तित्व की स्थिर सौम्यता और ब्लूज की matter of factness और निर्विकार स्वीकृति में एक गहरा साम्य है।  उनकी 1994 की एल्बम ‘फ्रॉम द क्रैडल’ ब्लूज की रिकॉर्डिंग इतिहास की सबसे ज़्यादा बिकने वाली एल्बम है।  

 

उनके एक लम्बे समय से तराशे व्यक्तित्व , शैली और मूड उनके लेट इयर्स में उनके बहुत काम आये।  1992 का MTV अनप्लग्ड   की अपार सफलता के बाद से वो लगातार अच्छे एल्बम निकल रहे हैं (Riding with the King, Me and Mr. Johnson, Back Home, The Road to Escondido, The Breeze) साथ ही निरंतर वो टूर्स, और फेस्टिवल्स में व्यस्त रहते हैं, क्रॉस रोड्स - गिटार पर आधारित सालाना फेस्टिवल उनका ही ब्रेन चाइल्ड है।  

 

आज के एरिक क्लैप्टन संगीत के प्रकाश स्तम्भ और उसके सेवक के रूप में पूरी तरह से सक्रिय हैं।  बेहद बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से उन्होंने स्वयं को ‘एल्डर स्टेट्समैन ऑफ़ म्यूजिक ‘ जैसी उपाधियों से दूर रखा है जिनके वैसे तो वो पूरे हक़दार हैं। उन्होंने संगीत के स्मारक बनने की जगह संगीत का विद्यार्थी बने रह कर अपनी उपयोगिता और उपादेयता बनाये रखी है।  आज वो जीवन की जिस गहराई के साथ संगीत पैदा कर रहे हैं , कई लोग कहेंगे की वैसी गहराई उनके शुरूआती दौर और प्रसिद्धि के चरम पर भी नहीं महसूस होती थी। वे  अपनी कला और जीवन से एक शांत पर सुकून से भरा गहरा रिश्ता बनाये हुए हैं जिसमे उनकी सृजनात्मकता निर्बाध अभिव्यक्ति पाती है।  वो कहते हैं "स्वीकृति अस्तित्व की एक महान अवस्था है। यह उन्माद, नाटक, चरम भावनाओं से अलग हटकर है। ” इन  चरम भावनाओं को जीकर और उन्हें छोड़कर क्लैप्टन ने संतुलित और अप्रतिम संवेदनशीलता की एक चिर स्थायी  उत्कृष्टता का निर्माण किया है।


मार्टिन स्कॉरसीसी - एक दिग्गज किस्सागो का सम्मोहक फिल्म संसार

 





यदि मार्टिन स्कॉरसीसी की फ़िल्में इतने ज़बरदस्त रूप से प्रभावी नहीं होतीं, तो वो दिखावे की श्रेणी में आ जाती । स्कौरसीसी शैली और स्टाइल के बहुत बेबाक़ जादूगर हैं। अच्छी बात यह है कि उनकी शो मैनशिप, सिनेमा की भाषा पर उनकी उत्कृष्ट पकड़ और वास्तव में एक महान फ़िल्मकार की अपनी विधा पर व्यापक महारत से आती है। उनकी शो मैन शिप कभी भी उनकी दृष्टि और कहानी के संदेश पर हावी नहीं होती वरन उनको निखारने के एक प्रभावी टूल के रूप में काम करती है। उनमें हम को एक बेमिसाल किस्सागो और मंजे हुए विज़ूअल स्टाइलिस्ट का सुखद संगम मिलता है। शैली और सार दोनों में अपने इस असाधारण कौशल को उन्होंने शहरी परिदृश्य के ज़मीनी यथार्थवादी चित्रण के लिए बड़ी मज़बूती से इस्तेमाल किया है। उनकी फ़िल्म यात्रा पिछले लगभग पाँच दशकों के सेल्युलाइड पर तैरते रूपकों से भरी पूरी है। उनकी दो प्रमुख संवेदनाएँ जो शायद उनको परिभाषित करतीं हैं क्योंकि वो उनके जिए हुए अनुभव से निकलीं हैं – पहली  कैथोलिक धार्मिक थीम्स (उन्होंने पादरी बनने की शिक्षा ली थी) और गैंगस्टर जीवन के प्रति एक सहज आकर्षण (वह न्यूयॉर्क के लिटिल इटली क्षेत्र में पले-बढ़े थे ), इन दोनों संवेदनाओं को उन्होंने अमेरिकी जीवन, या यूँ कहें कि जीवन की ही वास्तविकताओं  के धाराप्रवाह चित्रण की बारीकियों को जीवंत करने बड़ी सफलता से प्रयोग किया। स्कॉरसीसी के विषय और कथानक उनके शैलीगत कौशल से निखार पा कर अपनी जटिलताओं को बड़ी सहजता से दर्शक के ज़हन तक पहुँचा देते हैं। उनकी थीम्ज़ जैसे टेक्नॉलजी से लगाव या जिज्ञासा जनित आश्चर्य  (ह्यूगो) पावर और लालच में लिप्त विश्वासघात (उनकी सभी गैंगस्टर फिल्में),  प्रतिभा और संगीत का आनंद (रॉलिंग स्टोन्स और बॉब डायलन पर उनकी डॉक्युमेंटरीज़), कैथोलिक सिन (मीन स्ट्रीट) और अकेलापन (टैक्सी ड्राइवर) उनके जानदार कैमरा मूव्मेंट, बढ़िया अभिनय और सशक्त एडिटिंग जो कहानी की भावना को पकड़ती हैं से परदे पर अपनी पूरी गहराई से उतर आती हैं। । वह अपने कैमरे को कलम की तरह इस्तेमाल करते है और दर्शकों को अपने दृश्यों को 'पढ़ने'  न की महज़ ‘देखने’ के लिए प्रेरित करते है। वह पीओवी शॉट का उपयोग किए बिना पॉइंट ऑफ व्यू शॉट बनाने में सक्षम है। उनमे हम शिल्प और भावनाओं के एक आदर्श संगम से रूबरू होते हैं।

                       


यह विज़ूअल कैलिस्थेनिक्स खटकती नहीं है क्योंकि यह उनकी कहानियों के अंतर्निहित व्याकरण की आँच को ही इस्तेमाल करती है। स्क्रीन पर जो भी दिखता है, उस पर स्कॉरसीसी का अचूक नियंत्रण बना रहता है। ये नियंत्रण और अपने क्रीएटिव दायरे पर उनकी एक सम्पूर्ण महारथ उनका एक सहज गुण है। उन्होंने अपने तकनीकी गुणवत्ता  को अद्भुत तरीक़े से परिष्कृत कर रखा है, हालाँकि, यह परिष्कार हमेशा उनकी सबसे बड़ी खूबी – क़िस्सागोई - के पूरी तरह से आधीन रहा है । उनके पास कहानी की आत्मा को समझने और और कहानी के प्रवाह पर एक गीतात्मक नियंत्रण बनाए हुए उसे पर्दे पर उतारने का एक मँजा हुआ हुनर है। एक और चीज जो एक स्कॉरसीसी फिल्म को इतना लुभावना बनाती है, वह है अपने विषय के प्रति उनका उत्साह। जैसा कि रोजर एबर्ट ने 'गुडफेलास' के अपने रिव्यू में कहा था,  “फिल्म में एक अच्छे कहानीकार का सहज प्रवाह जो ये जानता की उसके पास बांधने वाली कहानी है” - ‘the film has the headlong momentum of a storyteller who knows he has a good one to share.” स्कौरसीसी दर्शकों तक उस उत्साह को उस आनंद को पूरी भव्यता में पहुचाने में सक्षम हैं और उन्हें अपनी किस्सगोई में बतौर राज़दार शामिल कर लेते हैं । 


17 नवम्बर 1942 को जन्मे स्कौरसीसी का बचपन दमे की गिरफ़्त में बीता जिसकी वजह से वो खके मैदानों वाले खेल कूद से वंचित रहे और सिनमा का एक एकाकी सा शौक़ पाल बैठे। घर के धार्मिक माहौल के चलते उन्होंने पादरी बन ने के लिए पढ़ना शुरू कर दिया था पर सिनमा का खिंचाव ज़्यादा ताकतवर साबित हुआ और वो न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के फ़िल्म स्कूल में भर्ती हो गए।  1969 में उन्होंने अपना पहली फ़ीचर लेंग्थ फ़िल्म Who's That Knocking at My Door? पूरी की । इस फ़िल्म में उनके सिनमा जीवन की दो बड़ी हस्तियों से उनकी मुलाक़ात हुई अभिनेता हार्वी कीटल और सम्पादक थेल्मा स्कून्मेकर। थेल्मा ने स्कॉरसीसी के विज़ूअल स्टाइल के प्रकटन और निखार में बेहद केंद्रीय भूमिका निभाई है। अगले तीन वर्षों में उन्होंने न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में फ़िल्म का शिक्षण किया, डॉक्युमेंटरीज़ पर काम किया, हॉलीवुड जा कर बॉक्स कार बार्था निर्देशित की फिर 1973 में न्यू यॉर्क लौट कर अपनी पहली महान फ़िल्म मीन स्ट्रीट बनायी। न्यू यॉर्क टाइम्ज़ का कहना है की मीन स्ट्रीट में स्कौरसीसी के कई स्टाइल और थीम्ज़ की नींव पड़ी जैसे बाहरी antiheroes, असाधारण केमरा और एडिटिंग टेक्नीक्स, धर्म और गैंगस्टर संस्कृति से जनूनी लगाव, और लोकप्रिय संगीत का विचारोत्तेजक उपयोग । इस फ़िल्म ने उनको अमरीका की सिनमा प्रतिभाओं की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया साथ ही उनके रिश्ते अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो के साथ बने । इस जोड़ी ने विश्व सिनमा को अनेक यादगार सौग़ातें दीं।

 उनकी ऐलिस डोंट लिव हियर अनि मोर से  एलेन बर्स्टिन को 1974 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर और सह-कलाकार डायने लैड को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का नामांकन मिला। उनकी हुनर परवान चढ़ रहा था और सिनेमा इतिहास की सर्वकालिक महान फिल्मों में से एक 'टैक्सी ड्राइवर' में इस हुनर एक शानदार अभिव्यक्ति मिली।

 'टैक्सी ड्राइवर' में पॉल श्रेडर की पटकथा में सिनेमाई ऐल्कमी का वो दुर्लभ संयोग बना जब सारे सिनमा तत्वों का संतुलन जादू बनाता है। 'टैक्सी ड्राइवर' जैसी भव्य अराजकता के लिए ‘संतुलन’ थोड़ा अजीब पर पूरी तरह से वाजिब शब्द है।  ये फिल्म व्यक्तिगत और सामाजिक विकृति के बीच संबंधों का एक गहरा अध्ययन है। स्कॉरसीसी ने उस भाषा पर अपने लेंस की पहुँच बनाई जिसका उपयोग सेल्युलाइड पर मानसिक क्षय, अकेलेपन से ग्रसित बीमार व्यक्ति को लगातार हिंसा के बहाने देते समाज के प्रभाव  को चित्रित करने के लिए किया जा सकता था । अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो ने एक सहज ज़िद के साथ इस चुनौती को पूरा लिया । संगीत,  अभिनय, सम्पादन, केमरा वर्क और निर्देशन ने मनोभावों और सिनमा क्षणों का एक शानदार ताना बाना बुना जिसमें हर रुग्णता, अवसाद  और अतिरेक स्वाभाविक और सिनमाई  आनंद के वाहक के रूप में उभरा। ट्रैविस बिकल (डी नीरो का कैबी ड्राइवर चरित्र) समाज में किसी भी तरह के सम्बंध बनाने में लगभग पूरी तरह से असक्षम है। मानवता के साथ पूर्ण अलगाव और साथी मनुष्यों के साथ सामान्य संपर्क साधने के उसके अजीब प्रयासों (उल्लेखनीय तौर पर जब वो अपनी पूरी मासूमियत से अपनी महिला मित्र को एक पोर्न थियेटर डेट पर ले गया था या राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के साथ टैक्सी में बातचीत में जो धीरे धीरे उसकी विकृति से एक अनजाने भय से स्क्रीन को भर देती है) ने कहानी को गहराई दी और दर्शकों ने एक जटिल कहानी के शानदार खुलासे में खुद की भागीदारी महसूस की। दर्शकों के लिए हर झकझोर देने वाली घटना कहानी की यात्रा को अपनी परिणति की ओर ले जाती है। अराजकता में निहित व्यवस्था और कसाव ने टैक्सी ड्राइवर को एक यादगार फिल्म बना दिया है।

                         

ब्लैक एंड व्हाइट में फिल्मायी गयी रेजिंग बुल उनकी सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म मानी जाती है और इसे उनकी महानतम फिल्म में स्थान दिया गया है। डी नीरो ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर जीता, जबकि नवागंतुक कैथी मोरियार्टी ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नामांकन जीता और थेल्मा शूनमेकर ने संपादन के लिए अकादमी पुरस्कार जीता। डी नीरो- स्कॉरसीसी टीम ने 1983 में द किंग ऑफ़ कॉमेडी में एक औसत दर्जे व्यंग्य दिया। जब स्टूडियो द्वारा हाथ खींचने के कारण द लास्ट टेम्पटेशन ऑफ क्राइस्ट को निर्देशित करने का उनका सपना टूट गया तो उन्होंने आफ्टर आवर्स का निर्देशन किया । आफ्टर आवर्स, हालांकि उनकी फिल्मों में बिसरी सी फ़िल्म मानी जाती है पर इस फ़िल्म को pure film making का लगभग निर्दोष उदाहरण कहा गया है।  द कलर ऑफ मनी ने उन्हें और अधिक व्यावसायिक सफलता दिलाई और उनके सितारों पॉल न्यूमैन और मैरी एलिजाबेथ मास्ट्रांटोनियो के लिए ऑस्कर ।

 

उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत एक उत्कृष्ट ‘गुडफेलाज’ के साथ की। फिल्म ने गैंगस्टर शैली पर उनकी पकड़ की धाक को और गहरा किया। Scorsese दबी हुई पर सुलगती हिंसा को प्रेषित करने में माहिर है जो कहानी के लिए ईंधन का काम करता है। Age of Innocence और कुंदन विभिन्न शैलियों में सम्माजनक उदाहरण थे। उन्होंने निकोलस केज के साथ ब्रिंग आउट डेड में शहरी जीवन के संघर्षो के यथार्थ पर वापसी के साथ मिलेनियम का अंत किया।

 

नई सदी मेंस्कॉरसीसी ने वह हासिल किया जो हर कलाकार का सपना होता है- एक महान लेट स्टाइल। वह अपनी मर्जी से एक आदतन प्रयास हीनता के साथ बेहतरीन फिल्में बना रहे हैं। भव्य हिंसक पीरियड ड्रामा गैंग्स ओफ़ न्यूयॉर्क से शुरू कर वह एविएटर जैसी बायोपिक, डायलन और स्टोन्स पर डॉक्युमेंटरीज़ में अपनी अप्रतिम प्रतिभा के झंडे गाढ़ चुके हैं।

               


2006, इनफर्नल अफेयर्स के रूपांतरण द डिपार्टेड के लिए उनके लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का ऑस्कर लेकर आया। एबर्ट को फिर से उद्धृत किया जाए तो " निर्देशक द्वारा अभिनेताओं, स्थानों और उनकी ऊर्जा का उपयोग, और फ़िल्म में दफन थीम का ट्रीटमेंट इसको (द डिपार्टेड को)  एक स्कौरसीसी फिल्म बनाता है, न कि केवल एक नक़ल। एक फिल्म उसके बारे में नहीं होती है जिसके  बारे में वो है बल्कि एक फ़िल्म उसके बारे में है की कैसे वो उसके बारे में है । एक स्कौरसीसी फिल्म के बारे में यह हमेशा सच है। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण फिल्में बनाना जारी रखा है। अगर शटर आइलैंड बहुत अच्छे पर आ कर रुक गयी , तो ह्यूगो एक महान फ़िल्म बन कर निकली । हिंसक गैंगस्टर फिल्मों से बहुत दूर, ह्यूगो ने स्कॉरसीसी जो उस वक्त 70 वर्ष के थे को अपनी प्रतिभा के पूरे शबाब के साथ पेश किया। अपने सम्मोहक तकनीकी कौशल का लाभ उठाते हुए एक सेल्युलाइड कविता बुन ना और एक प्रवाहपूर्ण कहानी कहना निर्देशक के तौर पर स्कौरसीसी की एक बड़ी सफलता है। वुल्फ़ ओफ़ वॉल स्ट्रीट, एक मॉडर्न क्लासिक बन चुकी है। Irishman हाल की सबसे चर्चित फ़िल्मों में से है और आने वाली किलर्ज़ ओफ़ द फ़्लावर मून का पूरी दुनिया दिल थाम कर इंतेज़ार कर रही है  । फिल्मों की अद्भुत दुनिया का हर मुरीद एक ही उम्मीद करता है कि इस दिग्गज किस्सागो की कहानी का 'हेडलॉन्ग मोमेंटम' को ऐसे ही बना रहे।

 

 -धीरज सिंह  

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